बुधवार, 10 जून 2015

ब्रिक्स बैंक: विकाशसील देशों की नयी शुरुआत


BRICS

ब्रिक्स बैंक ब्रिक्स समूह के देशों द्वारा स्थापित किए गया एक नए विकास बैंक का फिलहाल एक अनौपचारिक नाम है। 2014 के ब्रिक्स सम्मेलन में 100 अरब डॉलर की शुरुआती अधिकृत पूंजी के साथ नए विकास बैंक की स्थापना का निर्णय किया गया।माना जा रहा है कि इस बैंक और फंड को पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी संस्थाओं के टक्कर में खड़ा किया जा रहा है।



उद्देश्य एवं कार्य 
इसका उद्देश्य ब्रिक्स देशों और अन्य उभरती तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सतत विकास की मूलभूत परियोजनाओं के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना है।
 इस बैंक का प्रमुख कार्य होंगे- किसी देश शॉर्ट-टर्म लिक्विडिटी समस्याओं को दूर करना, ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग बढ़ाना, वैश्विक फाइनैंशल सेफ्टी नेट को मजबूत करना आदि।

पृष्ठभूमि व इतिहास 
प्रथम ब्रिक्स शिखर सम्मेलन वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान हुआ था। ब्राज़ील, भारत, रूस व चीन सभी बहुत बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हैं। 2008 का आर्थिक संकट अमेरिका से शुरु हुआ था तथा तमाम वैश्विक वित्तीय संगठन यथा विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) जैसे वित्तीय संस्थानों पर परोक्ष या अपरोक्ष रूप से अमेरिका अथवा यूरोप का ही वर्चस्व रहा है।  ऐसे में अमेरिका के संकटग्रस्त होने से इन सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर भी अनावश्यक बोझ पड़ा। इसी समस्या से निपटने के लिए ब्रिक्स समूह की स्थापना हुई। 2012 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में औपचारिक तौर पर एक नए विकास बैंक का प्रस्ताव लाया गया।

किंतु अभी समस्याएँ बहुत थीं। दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में हुए 2013 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स के नेता एक नया विकास बैंक बनाने के मु्ददे पर सहमति बनाने में नाकाम रहे। असहमति के प्रमुख आधार बैंक के मुख्यालय का स्थान तथा इसमें देशों की अंशधारिता थी। चीन और भारत मुख्यालय को अपने अपने देशों में चाहते थे। चीन चाहता था कि भागीदारी अर्थव्यवस्था के आकार के अनुपात में हो। लेकिन बाकी देशों को यह स्वीकार नहीं था क्योंकि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते इस व्यवस्था से इस बैंक पर चीन का एकाधिकार होने का डर था। बाकी देश चाहते थे कि इस बैंक में सभी देश बराबर के भागीदार हों।

2014 सम्मेलन में भी असहमति का दौर जारी था। समाचार एजेंसी रॉयटर के अनुसार, आखिरी 10 मिनट में समझौते पर राजीनामा हुआ और इस बैंक की स्थापना की घोषणा हुई। समझौते के तहत बैंक का मुख्यालय चीन को मिल गया, पहली अध्यक्षता भारत को मिली, रूस व ब्राजील को क्रमशः बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स के प्रथम संचालन मिले। दक्षिण अफ्रीका में अफ्रीकी क्षेत्रीय मुख्यालय रखा गया।


बैंक की स्थापना की घोषणा के बाद भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की आलोचना करते हुए 2014 शिखर सम्मेलन की संयुक्त उद्घोषणा में कहा गया कि - "हम इस बात पर निराश हैं और गंभीर चिंता व्यक्त कर
रहे हैं कि 2010 के अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष संबंधी सुधारों को लागू नहीं किया गया। इससे अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की वैधता, विश्वसनीयता व प्रभावशीलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।"विश्व बैंक की आलोचना भी इन शब्दों में की गई - " विश्व बैंक के ..... ये संभावित लक्ष्य तभी पूरे होंगे जब यह संस्थान अधिक लोकतंत्रीय संरचना की तरफ बढ़ेगा।"


इससे स्पष्ट है कि यह वैश्विक वित्त संस्थानों पर पश्चिमी देशों के कब्जे को सीधी चुनौती थी।


मुख्यालय
बैंक का मुख्यालय चीन के शंघाई में होगा।  नया विकास बैंक अफ्रीका क्षेत्रीय केन्द्र दक्षिण अफ्रीका में फिलहाल बना रहेगा।

अध्यक्ष 
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के पहले प्राधिकारी रूस के होंगे और बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स के पहले प्राधिकारी ब्राजील से होंगे। बैंक का प्रथम अध्यक्ष भारत से होगा। हर सदस्य देश को पाँच साल तक अध्यक्षता करने का अवसर मिलेगा। वर्तमान मेँ ब्रिक्स बैँक के अध्यक्ष के॰ वी॰ कॉमथ है।

पूंजी
यह बैंक शुरू-शुरू में 100 अरब अमरीकी डालर की प्राधिकृत पूंजी जुटाएगा। इस धनराशि में सभी संस्थापक सदस्य बराबर-बराबर राशि देंगे।

विचारधारा 

ब्रिक्स देशों का मानना है कि विकासशील देश खुद एक-दूसरे की समस्याएं और मुद्दों को ज्यादा अच्छी
तरह समझ सकते हैं। जिसके बाद साथ मिलकर समाधान निकाला जा सकता है। सभी विकासशील देश गरीबी, अपराध, आर्थिक अस्थिरता, बेरोजगारी, बढ़ती जनसंख्या, बीमारी, बुनियादी सुविधाओं की कमी और मंहगाई से जूझ रहे हैं। इन देशों के पास प्रचुर मात्रा में अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधन भी मौजूद हैं, जो कि इन देशों के विकास के लिए फायदेमंद सिद्ध हो सकती है।

 ब्रिक्स देशों के मुताबिक, यह बैंक आईएमएफ की अनुचित कोटा प्रणाली और विश्व बैंक की वोटिंग प्रणाली के प्रतिकार कदम के रूप में होगा। भारत एवं चीन आईएमएफ और विश्व बैंक के इस प्रणालियों की बदलाव की मांग की थी।

आईएमएफ और विश्व बैंक 

  • आईएमएफ और विश्व बैंक, 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपियन देशों के विकास और पुनर्निमाण के लिए स्थापित किया गया था। 
  • आईएमएफ लंबी अवधि के ऋण उपलब्ध कराने के लिए एक नियामक प्राधिकरण के रूप में काम करता है।
  • जबकि विश्व बैंक अपने सदस्य देशों को इंफ्रास्ट्रक्चरल योजनाओं के लिए लंबी अवधि के विकास ऋण उपलब्ध कराता है। 
  • इसने मुख्य रूप से आईबीआईडी और आईडीए को शामिल किया है। 

आईएमएफ पर जहां यूरोपियन देशों का दबदबा है। वहीं विश्व बैंक का नेतृत्व अमेरिका करता आया है। लिहाजा, उभरती अर्थव्यवस्थाओं या विकासशील देशों ने स्थायी विकास परियोजनाओं के लिए एक ऐसे संस्था की जरूरत महसूस की जो उन्हें वित्तीय सहायता दे सके।
Source-hindi.bankersadda.com

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