योग के आधारभूत तत्व
“योग की जड़ें”
योग शब्द संस्कृत भाषा के ’युज’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है जुड़ना या एक
होना। एक होने का अर्थ है व्यक्ति के आत्म का ब्रह्मांड की चेचना या सार्वभौमिक
आत्मा के साथ जुड़ना। ऐसा माना जाता है कि योग ’सत युग’ जिसे सुनहरा युग भी कहा जाता है, के दौरान विकसित हुआ था। योग के जन्म का पता सिंधु घाटी सभ्यता की खोज के बाद
लगा था, जो सबसे बड़ी सभ्यता थी। योग पर प्रारंभिक गंरथों में से एक को भारतीय ऋषि
पतंजलि द्वारा लिखा गया था। उनके कार्य को आज ’पतंजलि का योगसूत्र’ के नाम से जाना जाता है जो इंटरनेट पर व्यापक रूप से उपलब्ध है।
योग के आठ अंग
पतंजलि योग को “योग चित्त वृति निरोध“ के रूप मंे परिभाषित करते हैं - योग मानसिक क्रियाओं को रोकना है। इसलिए योग
को मन की एक पूर्ण शांत स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस लक्ष्य को
प्राप्त करने के लिए, पतंजलि आठ अंगों या अवस्थाओं के बारे में बताते हैं जिन्हें प्रत्येक
अभ्यासकर्ता को सीखना पड़ता है। आज अष्टांग योग (जिसका अर्थ है ‘आठ अंगों का
योग)को कई बार एक विशेष ढंग या अवस्थाओं की एक श्रंखला माना जाता है। लेकिन ये
वास्तव में पतंजलि द्वारा बताई गई आठ अवस्थाएं हैं। ये हैं:
· यम (नैतिक संयम)
· नियम (आध्यात्मिक अभ्यास)
· आसन (रीढ़ को सीधी करके बैठने की अवस्था)
· प्राणायाम (सांस का नियंत्रण)
· प्रत्याहार (इंद्रियों और कर्मेंद्रियों से
संबंध विच्छेद)
· धारणा (गहरी एकाग्रता की स्थिति)
· ध्यान (चिंतन के विषय की तरफ ध्यान को
निर्देशित करना
· समाधि (परम चेतना या दिव्य मन में पूरी तरह से
लीन होना)
एक नैतिक और सदाचारी जीवनशैली
आज योग व्यायाम का एक लोकप्रिय रूप बन चुका है जो लाखों लोगों के स्वास्थ्य और
फिटनेस में योगदान देता है। लेकिन पहले योग को एक पूर्ण जीवनशैली के रूप में देखा
जाता था। पतंजलि के अष्टांग योग के शुरू के दो अंगों,नैतिक संयम और
नियम (आचार, को हमेशा योग में सफलता का आधार माना गया है।.
“ऋषि पतंजलि पांच यम और पांच नियम बताते हैं,लेकिन वास्तविक
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में दस यम और दस नियम दिए गए हैं।“
योग की भूला दी गई जड़ों का वर्णन “योग का विस्मृत आधार-हिन्दुत्व के व्यवहार नियम“ नामक पुस्तक
में संुदर ढंग से किया गया है।
योग की चार श्रेणियां
योग व्यक्ति के शरीर, मन, भावना और ऊर्जा के स्तर पर कार्य रकता है। इसने योग की चार
व्यापक श्रेणियों को जन्म दिया हैः
- कर्म
योग, जहां
हम शरीर का उपयोग करते हैं
- ज्ञान
योग, जहां
हम मन का उपयोग करते हैं
- भक्ति
योग, जहां
हम भावना (संवेग) का उपयोग करते हैं
- क्रिया
योग, जहां
हम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं
योग की प्रत्येक प्रणाली जिनका हम अभ्यास करते हैं इनमें से
किसी एक या अधिक श्रेणियों के अंतर्गत
होगी। प्रत्येक व्यक्ति इन चार कारकों का एक
अनूठा संयोजन होता है। केवल एक गुरु (एक शिक्षक)
प्रत्येक अभ्यासकर्ता की आवश्यकता
के अनुसार इन चार आधारभूत मार्गों के उचित संयोजन का सुझाव
दे सकता है।
Source-http://idayofyoga.org
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