मुद्रा
मुद्रा
मुद्राओं को किसी भी समय आसानी से किया जा सकता है, हालाँकि पद्मासन में बैठकर चिकित्सा पर
ध्यान लगाने से लाभ बढ़ जाता है। मुद्रा के प्रयोग से कुछ बीमारियों का ईलाज किया जा सकता है,
मुद्रा के नियमित अभ्यास से आपके पूरे स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है और यह बीमारियों के
रोकथाम के लिये इस्तेमाल में लाया जा सकता है। नियमित रूप से मुद्रा का अभ्यास करने से यह
आपके हाथ के पल्स सेन्टर के जरिये शरीर में छोटे छोटे बदलाव लाने लगता है, जिससे सम्बन्धित
शरीर के भाग में चिकित्सा प्रक्रिया शुरू हो जाती है
हस्त मुद्रा (हैंड मुद्रा)
भौतिक शरीर वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश नामक पाँच तत्वों से बना है। एक मुद्रा हाथों की
वह एक मुद्रा या स्थिति है जो सीधे तौर ऊर्जा के प्रवाह से जुड़ी हुई है और यह शरीर के भागों को
सीधे तौर से मस्तिष्क से जोड़ती है जिससे जीवन ऊर्जा शरीर से प्रवाहित हो। कुछ विशेष योग
मुद्रा खास ऊर्जा प्रवाह को प्रेरित करते हैं, और अलग अलग भावनात्मक, आध्यात्मिक प्रतिक्रिया और
शारीरिक प्रतिक्रिया को बढ़ाते हैं। अंगुलियों या हाथ के अन्य भाग को अलग अलग तरीके से एक
साथ दबाने, मोड़ने, छूने या संकेत करने से, आप हाथ से मस्तिष्क के नियंत्रण को प्रेरित कर सकते हैं।
मुद्रा चिकित्सार: सम्पूर्ण स्वास्थ के लिये हाथ की स्थिति
मुद्रा चिकित्सा
आप मानें या न मानें, आपका स्वास्थ्य आपके हाथों में है! हमारे हाथ खास तौर पर स्वास्थ्य को
संभालने के लिये गुणी है। चार अंगुलियाँ और अंगुठा ब्रम्हांड को बनाने वाले पाँच मुख्य आधारों या
“पंचमहाभूतों” आकाश (व्योम),वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी की प्रतिनिधी करते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार, बीमारी इन पाँच तत्वों के संतुलन में नियमित रूप से गड़बड़ी से प्रकट
होती है।
मुद्रा चिकित्सा का सिद्धांत
मुद्रा चिकित्सा के प्राकृतिक विज्ञान के अनुसार पाँच अंगुलियाँ मूल पाँच तत्वों व्योम, वायु, अग्नि, जल
और पृथ्वी से सम्बन्धित हैं।
· अंगुठा- अग्नि
· तर्जनी - वायु
· मध्यमा - व्योम (आकाश)
· अनामिका - पृथ्वी
· कनिष्ठिका - जल
इन पाँचों तत्वों में संतुलन वापस बनाने के लिये, अंगुलियों को एक दूसरे को छूने और संरेखित करने
की कुछ खास विधियाँ हैं। इन्हें “हस्त मुद्रा” कहा जाता है और यह आपकी बीमारी में आराम पहुँचाने
नें बहुत आसानी से किसी भी समय किया जा सकता है और इसके साथ ही आपके स्वास्थ्य को
बनाने के लिये यह एक सरल उपकरण भी है।
मुद्रा के प्रकार
10 महत्वपूर्ण हस्त मुद्राओं के बारे में नीचे बताया गया है:
1. ज्ञान मुद्रा या मुद्रा ऑफ नॉलेज
अंगुठे के सिरे या तर्जनी या पहली अंगुली के सिरे को एक साथ छूयें। अन्य तीनों अंगुलियों को सीधा
रखना चाहिये।
लाभ:
A. यह साधना और एकाग्रता में मदद करता है और मस्तिष्क के नकारात्मकता को कम करता है।
B.यह समरण शक्ति बढ़ाता है और इसके नियमित अभ्यास विद्यार्थी अपने अंक और समझदारी
को बढ़ा सकते हैं
C.यह सरदर्द, अनिद्रा और हाईपरटेंशन को दूर करता है और क्रोध को कम करता है
2. वायु मुद्रा या मुद्रा ऑफ एयर
इस मुद्रा में, तर्जनी या पहली अंगुली के सिरे से अंगुठे के आधार को छुवा जाता है और अंगुठा
से हल्का दबाव बनाते हुए उसे अंगुली के ऊपर रख दिया जता है। अन्य अंगुलियाँ सीधी रहती हैं।
लाभ :
इस मुद्रा के अभ्यास से, सभी प्रकार के वात्य, वायु से सम्बन्धित प्रभाव जैसे अर्थराईटिस, गाउट,
\साइटिका, घुटनों का दर्द और गैस में आराम मिलता है। गर्दन के दर्द और रीढ़ की हड्डी के दर्द में
यह खास तौर पर आराम देता है।
3. शून्य मुद्रा या द मुद्रा ऑफ एम्प्टिनेस
मध्यमा के सिरे को अंगुठे के आधार पर रखा जाता है और अंगुठे को अंगुली पर हल्का दबाव बनाते
हुए अंगुली पर रख दिया जाता है। अन्य 3 अंगुलियाँ सीधी रहती हैं।
लाभ:
A. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास कान का दर्द और आँखो से पानी आना कम होता है
B.यदि यह मुद्रा रोजाना 1 घंटे के लिये किया जाये तो यह सुनने की क्षमता को ठीक करता है
C.हड्डियाँ मजबूत बनती है और हृदय सम्बन्धी बीमारी में लाभ मिलता है
D. यह मसूड़ों को मजबूती देता है और गले सम्बन्धी समस्या और थायराईड की बीमारी में
लाभकारी है
4. पृथ्वी मुद्रा या मुद्रा ऑफ अर्थ
इस मुद्रा में, अंगुठे का सिरे और अनामिका के सिरे को एक साथ छूआ जाता है। अन्य अंगुलियाँ
सीधी रखी जाती हैं।
लाभ :
A. इस मुद्रा के नियमित अभ्यास शारीरिक थकान, अधिक दुबला होना और मोटापा में मदद
मिलती है
B.यह पाचन तंत्र के क्रियाकलाप को ठीक करता है और विटामिना की कमी को ठीक करता है
C.यह शरीर को ऊर्जा और ओज प्रदान करता है
5. प्राण मुद्रा या मुद्रा ऑफ लाईफ
इस मुद्रा में अंगुठे, अनामिका और कनिष्ठिका के सिरे को एक साथ छूते हैं और अन्य 2 अंगुलियों को
सीधी रखते हैं।
लाभ :
A. यह प्राण के सुप्त ऊर्जा को जागृत करता है, ऊर्जा, स्वास्थ्य प्रदान करता है। यह आँखों की
बीमारियों में लाभकारी है और दृष्टि को ठीक करता है, शरीर को बीमारी से लड़ने की क्षमता
देता है, विटामिन की कमी को कम करता है, थकान दूर करता है
B.व्रत के दौरान यह भूख और प्यास को शांत करता है
C.अनिद्रा में, ज्ञान मुद्रा के साथ इस मुद्रा करने से नींद आने में मदद मिलती है
6.अपान मुद्रा या मुद्रा ऑफ डाईजेशन
यह मुद्रा अंगुठे, मध्यमा और अनामिका के सिरे को मिलाकर अन्य अंगुलियों को सीधा रखकर बनाया
जाता है।
लाभ :
A. शरीर से विषाक्तता निकल जाती है और शरीर शुद्ध होता है। यह कब्ज, बवासीर, वायु
सम्बन्धित बीमारियों में आराम देता है, मधुमेह, पेशाब के रुकने, गुर्दे सम्बन्धी समस्या और दाँत
की समस्या में लाभकारी है
B.यह पेट और दिल की बीमारी में लाभकारी है और पसीना लाता है
7. अपान वायु मुद्रा या मुद्रा ऑफ द हार्ट
यह मुद्रा वायु मुद्रा और अपान मुद्रा का संयोजन है। अंगुठे, मध्यमा और अनामिक के सिरे एक दूसरे
को छूते हैं जबकि तर्जनी अंगुठे के आधार पर हल्का दबाव बनाते हुए लग जाता है। कनिष्ठिका सीधी
रहती है।
लाभ :
यह पहले बताये गये अपान मुद्रा और वायु मुद्रा के लाभ प्रदान करता है।
A. यह दिल की बीमारियों और वायु सम्बन्धित बीमारियों में लाभकारी है और स्वास्थ्य प्रदान
करता है। कमजोर हृदय के व्यक्तियों को इसे रोज करना चाहिये। यह उन लोगो के लिये बहुत
फायदेमंद है जिन्हें हाल ही में दिल का दौरा पड़ा हो
B.यह पेट से गैस हटाता है, अस्थमा, सर दर्द, और उच्च रक्त चाप में लाभ देता है
C.यदि सीढ़ी चढ़ने के पहले इस मुद्रा को 5 से 7 मिनट तक कर लिया तो चढ़ने में आसानी होती
है
8. सूर्य मुद्रा या मुद्रा ऑफ सन
इस मुद्रा में अनामिका के सिरे को अंगुठे के आधार पर लगाया जाता है और अंगुली से अंगुठे पर
दबाव डाला जाता है।
लाभ :
A. यह शरीर का संतुलन ठीक करता है, शरीर का वजन और मोटापा कम करता है। यह शरीर
के तापमान को बढ़ाता है और पाचन को ठीक रखता है
B.यह हाईपरटेंशन और कॉलेस्ट्रॉल को कम करता है और ताकत बढ़ाता है
C.यह मधुमेह और लीवर सम्बन्धी बीमारी के लिये लाभकारी है
सावधानी:
कमजोर व्यक्तियों को यह हस्त मुद्रा नहीं करनी चाहिये और गर्मी के दिनों में लम्बी अवधि के लिये
यह मुद्रा न करें।
9. वरुण मुद्रा या मुद्रा ऑफ वाटर
यह मुद्रा अंगुठे और कनिष्ठिका के सिरे को मिलाकर बनता है।
लाभ :
A. यह त्वचा के रूखेपन को कम करता है और त्वचा के चमक और कोमलता को बढ़ाता है
B.यह त्वचा के रोह, मुहाँसे और रक्त सम्बन्धी बीमारियों में लाभकारी है। यह चेहरे पर निखार
लाता है।
सावधानी:
अस्थमा और साँस की तकलीफ से ग्रस्त व्यक्तियों को यह मुद्रा थोड़े समय के लिये करना चाहिये।
10.लिंग मुद्रा या मुद्रा ऑफ हीट
दोनो हाथों की अंगुलियों को आपस मीं भींच कर दाहिने हाथ कें अंगुठे को सीधा रखें। हल्का सा
दबाव बनाते हुए आराम से बैठें। रोज 20-30 मिनट के लिये अभ्यास करें।
लाभ :
A. यह मुद्रा शरीर में गर्मी पैदा करता है और अधिक देर तक करने पर जाड़े में भी पसीना ला
सकता है
B.जुकाम, नज़ला, दमा, खाँसी, साईनस समस्या और निम्न रक्त दाब में यह मदद करता है
C.यह कप सूखा देता है
सावधानी:
इस मुद्रा को करते समय, पानी, फल, फलो के रस, घी और दूध का सेवन बढ़ा देना चाहिये
Source-idayofyoga.org
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