प्राणायाम
प्राणायाम ‘प्राण’ और ‘आयाम’ दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘प्राण’ का संबंध सार्वभौमिक जीवन शक्ति से हैं और ‘आयाम’ का अर्थ है
नियमित या लम्बा करना। प्राण सांस या जीवन ऊर्जा है जिसकी आवश्यकता हमारी शारीरिक
और सूक्ष्म परतों को होती है, जिसके बिना शरीर समाप्त हो जाता है। इसलिए यह
कहा जा सकता है कि प्राण हमें जीवित रखता है। इसलिए प्राणायाम सांस का नियंत्रण
है। व्यक्ति प्राणायाम के साथ प्राण ऊर्जा की लय को नियंत्रित कर सकता है और एक
स्वस्थ शरीर और मन को प्राप्त कर सकता है।
योग गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए ज्ञान के साथ प्राणायाम का अभ्यास
भारत में हजारों वर्षो से किया जाता रहा है। प्राचीन गुरुओं ने प्राणायाम का
प्रयोग विभिन्न अनुष्ठानों में किया, और यह परम्परा आज भी पुजारियों द्वारा जन्म, विवाह, मृत्यु और अन्य
पवित्र समारोहों के अवसर पर किए जाने वाले योग के अभ्यासों के माध्यम से जीवित है।
लेकिन प्रणायाम को लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन में क्यों अपनाना चाहिए यह जानने
के लिए योग के दर्शन और उद्देश्य को समझना महत्वपूर्ण है।
प्राणायाम योग अभ्यास का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह हठ योग, पतंजलि
योगसूत्र और तंत्र योग का एक महत्वपूर्ण भाग है। प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य
स्वतंत्र स्नायु तंत्र पर नियंत्रण करना और इसके माध्मय से मानसिक कार्यों को
प्रभावित करना है।
प्राणायाम में क्या शामिल है? धीमी नियंत्रित गहरी सांस लेना (पूरक), सांस को रोकना
(कुंभक) और चेतना के साथ सांस को बाहर छोड़ना (रेचक)। इससे प्राण या जीवन ऊर्जा का
प्रसार शरीर के सभी भागों तक करने में सहायता मिलती है। प्राणायाम की नियमित
अभ्यास रसायन-ग्राहियों की संवेदनशीलता को नियंत्रित किया जा सकता है और इससे मन
को शांत करने में भी सहायता मिलती है।
अधिकतर हठ योग गं्रथों में प्राणायाम की निम्न आठ विधियों का वर्णन मिलता हैः
:
· सूर्यभेदन
· उज्जयी
· शीतली
· शीतकारी
· भ्रमरी
· भस्त्रिका
· मूर्छा
· पलावनी
यह कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को नाड़ीशोधन, सूर्यभेदन, उज्जयी, शीतली, ब्रह्मारी और
भस्त्रिका प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। लेकिन प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले
व्यक्ति को निम्न मूल बातों की पालना करनी चाहिएः-
1.
बाहरी वातावरणः प्राणायाम किसी भी हवादार और शोर रहित, कीटों और मक्खियों
से मुक्त स्थान पर करना चाहिए।
2.
प्राणायाम का अभ्यास शुरू करने के लिए उपयुक्त ऋतुः व्यक्ति को प्राणायाम का
अभ्यास बसंत ऋतु अर्थात मार्च-अप्रैल, और पतझड़ अर्थात सितम्बर-अक्तुबर में शुरू करना
चाहिए। एक प्राणयाम करने वाले व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राणायाम का
अभ्यास नियमित रूप से हो।
3.
सही समयः सुबह का समय प्रणायाम के अभ्यास के लिए उचित
होता है।
4.
सीट या आसनः सीट मुलायम, मोटी और
आरामदायक होनी चाहिए
5.
आसनः आसन जैसे पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन और
सुखासन को प्राणायाम के अभ्यास के लिए सबसे उपयुक्त अवस्था माना जाता है।
नाड़ीशोधन प्राणायाम
नाम का महत्त्वः
नाड़ीशोधन प्राणायाम या परस्पर बदलते हुए नाक से सांस लेने की विधि प्रणायाम
का एक मुख्य प्रकार है। यह मन को शांत, खुश और संतुष्ट रखने में सहायता करता है और
संग्रहित तनाव और थकान को दूर करता है। सांस लेने की तकनीक को नाड़ीशोधन का नाम
दिया गया है क्योंकि यह शरीर में रुके हुए ऊर्जा के चैनलों को साफ करने में सहायता
करती है, जिससे मन शांत होता है। इसे अनुलोम-विलोम
प्राणयाम भी कहा जाता है, जो दर्शाता है कि सांस को अंदर खींचने और बाहर
छोड़ने के लिए नाकों का प्रयोग हर बार परिवर्तित होता है।
विधि
ध्यान के किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जाएं और अपनी रीढ़ को सीधा और कंधों को
आरामदायक स्थिति में रखें। अपनी आंखें बंद करें और चेहरे पर हल्की से मुस्कान
लाएं। हथेली को आकाश की तरफ करके अपने बाएं हाथ को अपने बाएं घुटने पर रखें या चिन
मुद्रा में रखें (अंगुठा और तर्जनी उंगली एक दूसरे को हल्के से छूते हुए)।
हम अनामिका (रिंग फिंगर) और छोटी उंगली का प्रयोग बायीं नाक को खोलने और बंद
करने के लिए और अंगुठे का प्रयोग दायीं नाक को बंद करने और खोलने के लिए करेंगे।
अपने अंगूठे से अपनी दायीं नाक को बंद करें और बाएं नाक से हल्के से सांस को छोड़ें।
अब बायीं नाक से सांस को अंदर खींचें और बायीं नाक को धीरे से अनामिका और छोटी
उंगली से बंद करें। दायीं नाक से अंगूठा हटाते हुए सांस को बाहर छोड़ें। दायीं नाक
से सांस को अंदर खींचें और बायीं नाक से बाहर छोड़ें। इस प्रकार नाड़ीशोधन
प्राणायाम का पहला राउंड पूर्ण होता है। इस प्रकार नाकों को बदलते हुए सांस को
अंदर खींचना और बाहर छोड़ना 3 से 5 मिनट तक जारी रखें, और ध्यान रखें
कि लेते समय नाकों में कोई आवाज नहीं होनी चाहिए।
लाभ
·
मन को स्थिर और शांत रखता है, ध्यान को एकाग्र करता है, दाएं और बाएं
हिस्सों को संतुलित करता है।
·
रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत बनाता है।
·
उच्च रक्तचाप को व्यवस्थित करता है।
·
हमारे शरीर की प्रत्येक कोसिका में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन पहंचाता है
ताकि वे सही कार्य सकें।
·
शरार से व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालता है जैसे कार्बन डाइआक्साइड, जहरीली गैसें
आदि ताकि वे रक्त प्रवाह में न रहें।
·
मन और शरीर से प्रभावी रूप से तनाव को दूर करता है और आराम प्रदान करता है
सूर्यभेदन प्राणायाम
नाम का महत्त्वः
सूर्यभेदन प्राणायाम मुख्य प्राणायामों में से एक है जिसका अभ्यास कुम्भक
द्वारा किया जाता है। ‘सूर्य’ का अर्थ सूरज और ‘भेदन’ का अर्थ है
गुजरना। सूर्यभेदन प्राणायाम में सूर्य नाड़ी या दांयी नाक क्रियाशील होती है।
इसलिए व्यक्ति दायीं नाक से सांस को अंदर खींचता है और बायीं नाक से सांस को बाहर
छोड़ता है।
विधि
ध्यान की किसी भी स्थिति में बैठिए, जैसे पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन आदि।
पेट और रीढ़ को सीधा करें और हाथों को घुटनों पर रखें। अपनी आंखों को बंद करें और
अभ्यास शुरू करने से पहले आराम से कुछ सांस लें। बायीं नाक को अपने दाएं हाथ की
मध्यम और अनामिका उंगली से बंद करें। धीरे धीरे नाक से जितना संभव हो उतना लम्बे
समय तक बिना आवाज के सांस को अंदर खींचें। अब अपने दाएं हाथ को अपने घुटने पर रखें
और ठोड़ी को छाती से लगाकर सांस को अंदर रखें (जललन्धारा बंध)। साथ ही अपने मलाशय
की मांसपेशियों को सिकुड़ें (मूल बंध)। इस स्तर तक शुरू में नहीं पहूंचना चाहिए।
आपको कुंभक (सांस को रोके रखने की अवधि) की अवधि को धीरे धीरे बढाना पड़ता है।
दाएं नाक को बंद करके मूलबंध, उड्डियन बंध और जलंधारा बंध को हटाते हुए बिना
कोई आवाज किए हुए सांस को बाएं नाक से धीरे धीरे छोड़ना चाहिए। आराम करें और
वास्तविक स्थिति में दोबारा आ जाएं। ऐसा 3 से 5 बार करें।
लाभ
·
सूर्य भेदन प्राणायाम शरीर और इसके कार्यों को क्रियाशील करता है।
·
यह दिमाग को शुद्ध बनाता है और रक्त में आक्सीजन की कमी के कारण उत्पन्न
बीमारियों को दूर करता है
·
यह नाक के संक्रमण और विभिन्न प्रकार के नशों के दर्द से आराम दिलाता है
·
यह कम रक्तचाप से पीडि़त लोगों के लिए अच्छा है।
·
यह चेहरे की नाडि़यों को साफ करता है, वात रोगों को नष्ट करता है और आंतों के कीड़ों
को नष्ट करता है
उज्जयी प्राणायाम
नाम का महत्त्वः
उज्जयी प्राणायाम को विजयी सांस या महासागरीय सांस भी कहते हैं। यह प्राणायाम
सांस को फेफड़ों में प्रवेश करने से पहले फैलाता और गर्म करता है। इससे सांस में
गर्मी उत्पन्न होती है जो शरीर के जहरीले पदार्थों को नष्ट करने सहायक है। सांस को
अंदर खींचना और बाहर छोड़ना दोनों क्रियाएं नाक के द्वारा होती हैं। सांस को गले
के पीछे की ओर निर्देशित किया जाता है जबकि मांसपेशियों को सिकोड़ा जाता है, जिसके कारण
महासागर की लहरों की तरह एक हिस्सिंग (सिसकी) की आवाज आती है। जब गले से निकलने
वाली हवा के मार्ग को संकरा किया जाता है तो हवा की गति बढ जाती है।
विधि
किसी भी आसन में आराम से बैठ जाएं। सुनिश्चित करें कि आप मूंह बंद करके अपनी
नाक से सांस लें। गहरी सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें। आपको अपने गले की
मांसपेशियों को भी सिकोड़ना चाहिए ताकि हवा का मार्ग संकीर्ण बन सके जिससे सांस
पतली और लम्बी हो जाती है। शुरू में उज्जयी प्राणायाम का अभ्यास तीन मिनट तक किया
जा सकता है, और धीरे धीरे 10 मिनट तक बढाया
जा सकता है। आपे सांस के अंदर खींचने और बाहर छोड़ने की अवधि एक समान रहनी चाहिए।
जब भी आपको लगता है कि आपका मन भटक रहा है तो मन को सांस पर केंद्रित करें। सांस
को अंदर खींचते समय सांस कंठ के संकीर्ण होने के कारण एक विशेष आवाज आती है। सांस
को अंदर खींचते समय आवाज हल्की और एक समान होनी चाहिए। इसका अभ्यास निरंतर करना
चाहिए।
लाभ
·
सिर से गर्मी को बाहर निकालता है
·
अभ्यासकर्ता की आवाज साफ और सुरीली बन जाती है
·
पेट की अग्नि बढ जाती है
·
इससे गले का बलगम साफ हो जाता है और सभी प्रकार की सांस की बीमारियों ठीक हो
जाती हैं
·
यह अस्थमा के रोगियों और सांस के रोगियों के लिए भी अच्छा है
शीतली प्राणायाम
नाम का अर्थः
संस्कृत में ”शीतली“ का अर्थ है ठण्डा करना या शांत करना। शीतली
सांस का अभ्यास मन को शांत करता है, तनाव को कम करता है या फाइट-फ्लाइट अनुक्रिया
को कम करता है। यह शरीर और मन को ठण्डा करता है। इससे रक्तचाप भी कम होता है। यह
प्राणायाम हाइपर एसिडिटी या अल्सर के लिए भी प्रभावी है।
विधि
पद्मासन या किसी अन्य आरामदायक आसन में बैठ जाएं। ज्ञान की मुद्रा में अपने
हाथों को घुटनों पर रखें। धीरे से अपनी आंखें बंद करें, जीभ को मूंह से
बाहर निकालें और लम्बाई के बल जीभ के किनारों को मोड़कर पाइप की तरह बनाएं और सांस
को अंदर खींचें। सांस को अंदर खींचते समय हवा जीभ के माध्यम से अंदर जानी चाहिए।
अपना मूंह बंद करें। ठोड़ी को छाती पर लगाए हुए सांस को जितना संभव हो उतने समय तक
अंतर रखें, साथ ही अपने मलाशय की मांसपेशियों को सिकुडें।
इसके बाद मलाशय और नाक को आराम देते हुए सांस को बाहर छोड़ें।
लाभ
·
गले और स्पलीन आदि से संबंधित बीमारियों में लाभदायक।
·
बदहजमी को ठीक करता है।
·
प्यास और भूख को नियंत्रित करने में सहायक है।
·
रक्तचाप को कम करता है।
·
पित्त दोष (गर्मी) के असंतुलन के कारण पैदा हुई बीमारियों मंे लाभदायक है
·
रक्त को साफ करता है
शीतकारी प्राणायाम
नाम का अर्थः
शीतकारी प्राणायाम या हिस्स की आवाज करती हुई सांस के अभ्यास को प्राय दूसरे
आसनों और प्राणयाम को करने के बाद किया जाता है। शीतकारी प्राणायाम शरीर को ठण्डा
करता है। यह शीतली प्रणायाम की तरह ही है।
विधि
हथेलियों को घुटनो पर रखते हुए आरामदायक आसन में बैठ जाएं। जीभ को ऊपर की तरफ
इस प्रकार मोड़ें कि जीभ का निचला हिस्सा ऊपरी तालु को छूए। दांतों को भीच लें।
आठों को अलग करें ताकि दांत दिखाई दें। धीरे से सांस लें। पहले पेट को भर लें, इसके बाद छाती
को और अंत में गर्दन क्षेत्र को। यह पूर्ण योगिक सांस होती है। अंदर सांस लेते समय
हल्की सी हिस्स की आवाज होती है। यह सांप की आवाज के समान होती है। ठोड़ी को लाक
करने के लिए गर्दन को आगे झुकाएं, जिसे जलन्धारा बंध भी कहते हैं। कुछ देर तक
सांस को अंदर रखें। जलन्धरा बंद को हटाएं और धीरे से सांस को बाहर छोड़ें। यह
शीतकारी प्राणायाम का एक राउंड है। आप उतने राउंड पूरे कर सकते हैं जितने आप
अरामदायक
लाभ
·
दांतों के बीच से हवा को खींचने की क्रिया शरीर पर ठण्डा प्रभाव डालती है।
·
शीतकारी शरीर और मन को आराम देती है
·
इससे भूख, प्यास, नींद और थकान कम होती है
·
शीतकारी दांतों और मसूड़ों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है
·
यह पुरानी पेट की जलन, प्लीहा, विभिन्न बीमारियों की जलन, बुखार, अपच, पित्त दोष, बलगम को दूर
करता है।
सावधानियां
यह प्राणायाम ठंड, खांसी या टान्सिल से पीडि़त लोगों को नहीं करना
चाहिए।\
भ्रमरी प्राणायाम
नाम का अर्थः
भ्रमरी प्राणायाम का नाम भ्रमरी नामक काली भारतीय मधुमक्खी के नाम पर पड़ा है।
इस प्राणायाम में सांस को बाहर छोड़ना मधुमक्खी की आवाज से मिलता है। भ्रमरी
प्राणायाम तुरंत आपके मन को शांत करता है। मन को उत्तेजना, निराशा या
चिंता और क्रोध से मुक्त करने के लिए भ्रमरी सबसे अच्छा प्राणायाम है।
विधि
एक शांत, हवादार कौने में अपनी आंखों को बंद करके सीधे
बैठ जाएं। अपनी तर्जनी उंगली को अपने कानों पर रखें। आपके गाल और कान के बीच एक
उपास्थि (हड्डी) होती है। अपनी तर्जनी उंगलियों को इस हड्डी पर रखें। गहरी सांस
अंदर खींचें और सांस को बाहर छोड़ते समय इस हड्डी को थोड़ा दबाएं। आप एक मधुमक्खी
की तरह तेज आवाज करते हुए सांस को अंदर बाहर करते समय इस हड्डी को निरंतर दबाए भी
रख सकते हैं। आप एक कम आवाज कर सकते हैं परंतु बेहतर परिणामों के लिए तेज आवाज
अच्छी होती है।
लाभ
·
भ्रमरी प्राणायाम तनाव, चिंता और क्रोध को कम करने में सहायक है। यह
उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए एक लाभदायक प्राणायाम है क्योंकि यह उत्तेजित मन
को शांत करता है।
·
माइग्रेन को ठीक करने में सहायता करता है
·
ध्यान और स्मरण शक्ति को बढाता है।
·
आत्मविश्वास को बढाता है।
·
रक्त संचार में सुधार करता है और ब्लड प्रेसर को कम करता है।
भस्त्रिका प्राणायाम
नाम का अर्थः
भस्त्रिका प्राणायाम का एक मुख्य रूप है। संस्कृत में भस्त्रिका का अर्थ है ‘धौंकनी’। यह मन को साफ
करता है और प्राणों की बाधा को साफ करता है। जबरदस्ती निष्कासन का तेज अनुक्रम
भस्त्रिका का की एक मुख्य विशेषता है।
विधि
किसी भी आसान मं बैठ जाएं-पद्मासन, सिद्धासन और वज्रासन इस अभ्यास के लिए आदर्श
हैं। शरीर को सीधा रखें और मूंह को बंद कर लें। तेज अनुक्रम में सांस को अंदर
खींचें और बाहर करें। इस प्रक्रिया के दौरान हिस्स की आवाज आती है। शुरू में प्रति
राउंड 10 बार सांस अंदर और बाहर छोड़ें। एक समय के साथ
साथ इसे बढाया जा सकता है। कुछ अभ्यासकर्ता पसीना आने तक इस अभ्यास को करते हैं।
कुछ लोग भस्त्रिका को अंतिम बार सांस छोड़ने के बाद एक गहरी सांस लेते हैं और सांस
को जितना संभव हो उतने समय तक अंदर रखते हैं। इसके बाद वे सांस को बाहर छोड़ते हैं
और सामान्य रूप से सांस लेना शुरू करते हैं। यह एक राउंड होता है।
लाभ
·
भस्त्रिका प्राणायाम ब्लड में आॅक्सीजन की मात्रा को बढाता है। अतिरिक्त
आॅक्सीजन पूरे शरीर में जाती है।
·
इससे छाती और नाक की बाधा दूर हो जाती है
·
यह अस्थमा के रोगियों के लिए अच्छा है और गले की जलन को समाप्त करता है।
·
यह पेट की अग्नि को बढाता है और पाचन शक्ति को बढाता है।
·
कुंभक के साथ भस्त्रिका का अभ्यास करने पर शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है और
यह ठण्ड के मौसम में इसे गरम रखता है।
·
सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होता है और यह सभी अंगों को सक्रिय रखता है।
·
भस्त्रिका शरीर की नाडि़यों या प्राण ऊर्जा के चैनलों को शुद्ध बनाता है, जिससे प्राण
शरीर के सभी अंगों में प्रवाहित होता है।
Source-http://idayofyoga.org
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