मंगलवार, 30 जून 2015

Yoga Asanas / States in hindi

आसन/अवस्थाएं 

योग के अभ्यास में,आसन स्थिर बैठने की कला है और ऐसी कोई भी अवस्था है जो अभ्यासकर्ता के स्वास्थ्य को प्राप्त करने और उसे बनाए रखने के लिए उपयोगी हो। इसके अतिरिक्त यह शरीर के लचीलेपन और शक्ति को बढाने और लम्बे समय तक ध्यान की मुद्रा में बैठे रहने की योग्यता का विकास करने में योगदान देता है। इस प्रकार के आसानों को अंग्रेजी में "yoga postures" या "yoga positions" कहा जाता है। योग आसन को योग मंे प्रयोग करते हुए एक आसान के दौरान बैठने या खड़े होने की एक अवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है। आधुनिक प्रयोगों में योगासन में पीठ के बल लेटना,सिर के बल खड़े होना और विभिन्न प्रकार की अन्य अवस्थाएं शामिल हैं।

योग आसनों का इतिहास वैदिक गं्रथों से लेकर आधुनिक काल तक खोजा जा सकता है, जिसके दौरान उनमें क्रमानुसार सुधार हुए। एक विषय के रूप में योग का वर्णन सबसे पहले पतंजलि (600 ईसा पूर्व) ने अपने योग सूत्रों में किया, जो योग सिद्धांतों और व्यवहारों पर पहला व्यवस्थित गं्रथ था। लेकिन इससे पहले एक शारीरिक संस्कृति चलन में थी, और पतंजलि की उपलब्धि इन सभी विविध परम्पराओं को क्रमानुसार व्यवस्थित करनें में है। लिखित प्रमाण दर्शाते हैं कि योग आसनों का विकास सामान्य भारतीय विचारधारा के साथ क्रमबद्ध तरीके से हुआ है।

                                   अर्ध चक्रासन
                                        (हाल्फ व्हील पॉश्चर)



संस्कृत भाषा में, अर्ध का अर्थ है आधा और चक्र का अर्थ पहिया। इस मुद्रा में, शरीर का आकर आधे पहिये का आकार ले लेता है, इसलिये इसे अर्ध-चक्रासन कहा जाता है।

तकनीक
  • दोनो पैरों को जमीन पर एक साथ सटाकर खड़े हो जायें।
  • भुजाओं को बगल में लगाकर रखें।
  • कोहनियों को मोड़कर हथेली से निचले कमर को सहारा दें।
  • अब धीरे सांस को छोड़ें और जितना संभव हो पीछे झुकें
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  • संतुलन खोये बिना सामान्य रूप से साँस लेते हुए मुद्रा को बनाये रखें।
  • साँस ले और धीरे धीरे मूल स्थिति में वापस आयें।
Benefits
  • यह आसन गर्दन और पीठ की मांसपेशियों, खास तौर पर निचले पीठ को।
  • यह मेरुदण्ड के लचीलेपन को विकसित करता है।
  • यह शरीर के बगल के वसा को कम करने में मदद करता है।
  • यह कुल्हों को अकड़ को भी खत्म करता है।


भुजंग का अर्थ होता है कोबरा। इस आसन की अन्तिम स्थिति कोबरा के जैसी होती है।
तकनीक
  • दोनो पैरों को एक साथ करके पेट के बल लेट जायें, पंजे बाहर की तरफ रखें, हाथों को जाँघों के बगल में रखें, हथेली ऊपर की तरफ रखें, और ललाट को जमीन पर रखें।
  • हाथों को कोहनी से मोड़ें, हथेली को जमीन पर कंधे के किनारे रखें; अंगूठे काँख की तरफ होने चाहिये।
  • ठुड्डी को आगे ले आयें और जमीन पर रख दें, सामने के तरफ देखें।
  • धीरे धीरे सिर, गर्दन और कंधों को उठायें। धड़ को नाभि तक उठायें। ठुड्डी को जितना हो सके ऊपर करें।
  • जब तक सुविधाजनक लगे मुद्रा को बनाये रखें। फिर धीरे धीरे शरीर को जमीन पर ले आना शुरू करें, नाभि के ऊपरी क्षेत्र से शुरू करें फिर सीना, कंधा और ठुड्डी रखे और अंत में जमीन पर ललाट रखें।
  • हाथों को जाँधों के बगल में रखें; और आराम करें।
लाभ
  • यह मुद्रा पीठ के पेशियों को प्रभावित करता है।
  • यह खाने के बाद के पेट के भारीपन में लाभकारी है।
  • यह स्लिप्ड डिस्क को फिर से जगह पर ला सकता है, पीठ के दर्द को हटाता है और रीढ़ की हड्डी को लचकार और स्वस्थ बनाता है।
  • यह अण्डाशय और गर्भाशय को सुदृढ करता है और मासिक एवं स्त्री सम्बन्धी समस्याओं को दूर करता है।
सावधानी
  • हार्निया और पेट में चोट सम्बन्धी समस्या पर इस आसन को बिल्कुल नहीं करना चाहिये।


“ चक्र“ का अर्थ है पहिया। इस आसन के अन्तिम स्थिति में शरीर पहिये जैसे लगने लगता है , इसलिये इसका यह नाम पड़ा।

तकनीक
  • पीठ के बल लेट जायें , घुटने मोड़ लें जिससे की एड़ी नितम्बों को छूती रहें और पंजे 12 इंच की दूरी पर रखें।
  • भुजाओं को उठायें; कोहनियों को मोड़े; हथेली को कन्धो के ऊपर सिर के बगल में जमीन पर रखें।
  • साँस लें और धीरे धीरे धड़ को उठाते हुए पीठ को धनुष के आकार में ले जायें।
  • धीरे धीरे सिर को गिरा कर भुजाओं और पैर को जितना हो सके सीधा कर लें।
  • जब तक सुविधाजनक हो इस मुद्रा में बने रहें; फिर धीरे धीरे शरीर को नीचे ले आयें ताकि सिर जमीन को छू सके। शरीर के अन्य हिस्से को भी नीचे ले आयें और आराम करें।
  • शरीर को पैर पर उठाने की बजाये पंजों पर उठाकर विभिन्नता लाई जा सकती है।
लाभ
  • यह माना जाता है कि इस आसन के अभ्यास से बढ़ती उम्र के लक्षणों को धीमा किया जा सकता है।
  • यह रीढ़ की हड्डी को मजबूत और लचीला बनाता है , कमर को पतला और सीना चैड़ा करता है।
  • यह आसन घुटनों , ऊपरी अंगों और कंधों के लिये अच्छा है।
  • यह हड्डियों की अकड़न पसलियों के जोड़ के अकड़न के कम करने में उपयोगी है।
सावधानी
  • तीव्र हृदय सम्बन्धी बीमारी , उच्च रक्तचाप , वर्टिगो , पेट की सोचन और हार्निया के मरीजों को यह आसन नहीं करना चाहिये।

Dhanurasana


संस्कृत में, धनु का अर्थ होत है धनुष। इस आसन के अन्तिम मुद्रा में, शरीर धनुष का आकार ले लेता है; इसलिये इस आसन का नाम धनुरासन पड़ा।

तकनीक
  • पेट के बल लेट जायें।
  • साँस छोड़ते हुए घुटनों को मोड़ें और टखनों को हाथ से पकड़ लें।
  • साँस लेते हुए जाँघों, सिर और सीने को जितना हो सके ऊपर उठायें।
  • शरीर के भार निचले पेट पर संतुलित करें। टखनों को मिला लें। सामने देखें और सामान्य साँस लें।
  • साँस छोड़ते समय, सिर और और पैर को घुटनों तक ले आयें। कुछ देर तक इस मुद्रा को बनाये रखें और धीरे धीरे मूल स्थिति तक वापस आ जायें।
लाभ
  • धनुरासन पूरे पेट और उसके अंगों को ढ़ीला करता है।
  • इस आसन में पैंक्रियाज और जिगर की मालिश हो जाती है। इसलिये यह मधुमेह के मरीजो के लाभकारी है।
  • पीठ की स्नायु, पेशियों और तंत्रिकाओं को अच्छा खिंचाव मिलता है और रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है। यह पीठ दर्द के लिये उपयोगी है।
  • यह कब्ज, अपच और जिगर की गड़बड़ी को दूर करने में मदद करता है।
  • यह झुके हुए पीठ और कंधे को सीधा करता है।
  • यह नाभि को उसकी जगह पर ठीक करने में मदद करता है।
  • यह शरीर के पाचन प्रणाली, उत्सर्जन तंत्र और प्रजनन तंत्र को नियंत्रित करता है।
  • यह छाती के बीमारी के ईलाज में उपयोगी है।
  • यह थाईरोईड और एड्रिनल ग्रंथियों को प्रेरित और नियंत्रित करता है।

Halasana


”हल” का अर्थ प्लॉ। यह मुद्रा अपनी अन्तिम स्थिति में शरीर का आकार भारतीय हल के समान दिखने के कारण हलासन के नाम से जाना जाता है। वो व्यक्ति जो हलासन नहीं कर सकते हैं उन्हें हलासन करने का सलाह दिया जाता है।

तकनीक
  • पीठ के बल लेट जायें, हाथ को जाँघों के बगल में लगायें, हथेली को जमीन पर रखें।
  • धीरे धीरे अपने घुटनों से मोड़े बिना उठाये और 30व के कोण पर रूक जायें।
  • कुछ देर बाद अपने को 60व के कोण पर ले जाकर इस स्थिति में बने रहें।
  • अब धीरे धीरे पैरों को 90व के कोण पर उठा लें। यह अर्धहलासन की अन्तिम स्थिति है।
  • जमीन पर हाथ से दबाव बनाते हुए, नितम्बों को फर्श से हटाते हुए उठायें; पैरों को सिर के तरफ ले आयें और और फर्श को अंगुलियों से सर के पीछे छूयें।
  • सुविधाजनक स्थिति तक इस मुद्रा में बने रहें।
  • हाथों को सीधा ले जाकर पीठ के पीछे जमीन पर रख दें। यह हलासन है। सुविधाजनक स्थिति तक इस मुद्रा में बने रहें।
  • वापस मूल स्थिति में आते समय, कमर को नीचे करें और पैरों को जमीन से उठायें।
  • धीरे धीरे कमर को जमीन पर लगायें और पैरों को पहले 90व के कोण पर ले आयें और फिर सर को उठाये बिना पैरों को जमीन पर ले आयें।
लाभ
  • यह आसन अपच और कब्ज में लाभ देता है।
  • मधुमेह, बवासीर, और गले सम्बन्धी बीमारियों इस आसन का अभ्यास करना उपयोगी है।
  • हलासन को करने के बाद भुजंगासन को करने से इस आसन का अधिकतम लाभ मिलता है।
सावधानी
  • जिन्हें सर्विकल स्पैंडोलाईटिस, रीढ़ की अकड़न, हाईपरटेंशन हो उन्हें इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिये।



Matsyasana

संस्कृत में मत्स्य का अर्थ है मछली। इस आसन की अन्तिम स्थिति में, शरीर मछली का आकार ले लेता है; इसलिये इस आसन को मत्स्यासन के नाम से जाना जाता है।

तकनीक
  • पद्मासन में बैठें।
  • धीरे पीछे की तरफ झुक जायें और अपने पीठ के बल पूरी तरह लेट जायें। ऊपरी पीठ को कोहनी और हथेली के सहारे से ऊपर उठायें और सिर के शीर्ष को जमीन पर रख दें।
  • बायें पैर को दाहिने हाथ से इसी प्रकार दाहिने पैर को बायें हाथ से पकड़ लें और कोहनी को जमीन पर रखें।
  • घुटने जमीन पर लगे होने चाहिये और पीठ इतनी घुमावदार होनी चाहिये कि शरीर सिर और घुटनों से संतुलन मिले। अन्तिम मुद्रा को बनाये रखें।
  • वापसी में, पैरों को छोड़ दें, हथेलियों को जमीन पर रखें, हाथ की सहायता से सिर सीधा करें और धीरे धीरे वापस आ जायें।
  • शवासन में आराम करें।.
लाभ
  • मत्स्यासन पेट के अंगों की मालिश करता है कब्ज दूर करता है।
  • यह गले के बीमारियों में प्रभावी है।
  • यह ऊपरी पीठ की पेशियों को आराम देता है और रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
  • यह ऊपरी पीठ की पेशियों को आराम देता है और रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
  • यह घुटने और पीठ की दर्द में उपयोगी है।
  • यह पेड़ू में खिंचाव लाता है।
  • यह महिलाओं में कई प्रकार के लैंगिक समस्याओं के रोकथाम और निवारण में उपयोगी है।
  • यह गर्भाशय सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त महिला और मधुमेह के लिये बेहतर है।
सावधानी
  • जिन व्यक्तियों को पेप्टिक अल्सर, हार्निया या अन्य कोई रीढ़ की हड्डी से सम्बन्धित कभी बीमारी हो तो बिना विशेषज्ञ के सलाह के यह आसन नहीं करना चाहिये।

नटराजासन

(लॉर्ड ऑफ द डांसर्स पॉश्चर)

natrajasana


नटराजासन का नाम नृतकों के देवता शिव के नाम पर पड़ा। नटराजासन के बहुत से प्रकार हैं। यहाँ पर जो आसन बताया गया है वह एडवांस आसन है।
तकनीक
  • सीधे खड़े हो जायें।
  • दाहिने पैर को उठायें घुटने से मोड़ें, और जितना हो सके पीछे की तरफ उठायें।
  • दोनो हाथों को सामने से उठायें, उन्हें पीछे ले जाकर दाहिने पैर को हाथों से पकड़ कर जितना हो सके सर के ऊपर तक ले आयें,बायें पैर पर खड़े रहें।
  • सामने देखते हुए सिर को स्थिर रखें।
  • जब तक संभव हो संतुलन बनाये हुए इस मुद्रा में बने रहें और फिर धीरे धीरे मूल स्थिति में वापस आ जायें।
लाभ
  • यह एकाग्रता बढ़ाता है।
  • पैर और हाथ की पेशियों को मजबूती देता है।
  • यह कंधों और सर में कैल्शियम के जमाव को रोकता है।
  • यह शरीर के संतुलन को विकसित करता है।

पश्चिमोत्तासन

(पोस्टिरियर दृ स्ट्रेज़ पॉश्चर)

pascimottanasana


“ पश्चिम“ का अर्थ होता है पिछला और उत्तान का अर्थ होत खिंचाव। इस आसन में, शरीर का पिछला भाग मेरुदण्ड सहित में खिंचाव पड़ता है, इसलिये इसका नाम पड़ा। दोनो पैरों को सामने जमीन पर तानकर हाथ से अंगूठे को पकड़कर, व्यक्ति को अपने सर को घुटनों पर रखकर यह स्थिति बनानी चाहिये। इसे पश्चिमोत्तासन कहते हैं।

तकनीक
  • जमीन पर बैठ जायें, दोनो पैरों को जमीन पर सामने रखें। दोनो हाथों को अगल बगल रखें और हथेली को जमीन पर रखें। अंगुलियों को सामने के तरफ रखें।
  • अपने पीठ की मांसपेशियों को ढ़ीला करें और शरीर को जितना संभव हो सके उतना आगे झुकायें।
  • आरामदेह लगने तक इस मुद्रा को बनाये रखें।
  • वापस आने के लिये, अपने हाथों को ढ़ीला करें और आरामदेह स्थिति पर रखें। उन्हें जाँघों पर रखना आसान होता है।
  • इस आसन का अभ्यास रोजाना करें और अपने आपको आगे झुकाने का प्रयास करते रहें जब तक कि आप तर्जनी से अंगूठे को पकड़ न सकें। नाभि को जाँघ पर छूना चाहिये।
  • सीने और सिर को जितना हो सके पैरों के पास जितना संभव हो सके लायें( और कोहनी को जमीन पर पैरों को बगल में रख दें।
  • सामथ्र्य के अनुसार मुद्रा को बनाये रखें। सीने और सिर को पैरों से उठाते हुए वापस आयें।
लाभ
  • यह पेट की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
  • यह कब्ज, मोटापा ,अपच, वीर्य सम्बन्धी कमजोरी और त्वचा के रोग में लाभकारी है।
  • यह सायटिका के संभावना को कम करता है।
  • जो इस आसन को तीन मिनट से ज्यादा के लिये करते हैं उन्हें इस आसन के बीच में उड्डियान बंध का अभ्यास करना चाहिये।
सावधानी
  • जिनके पेट अल्सर की शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये।

salabhasana


शलभ या एक टिड्डा। इस आसन के अन्तिम स्थिति में, शरीर टिड्डे का आकार लगने लगता है, इसलिये इसका यह नाम पड़ा है।

तकनीक
  • पेट के बल लेट जायें, हथेली को जाँघों के नीचे रखें, एडि़यों को मिला लें।
  • साँस लेते हुए, हथेली को नीचे की तरफ दबायें और पैरों को जितना हो सके ऊपर ले जायें।
  • ऊपर की तरफ देखें और पाँच बार साँस लें।
  • साँस छोड़ते हुए पैरों को नीचे ले आयें। हाथों को हटा लें।
लाभ
  • दमा के मरीजों के लिये शलभासन।
  • यह रक्त की शुद्धि करता है और इसका परिसंचरण सुदृढ़ करता है।

सावधानी
  • जिन्हें उच्च रक्त चाप, हृदय की बीमारी हो और दमा की शिकायत हो, उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये।


sarvangasana

सर्वांगासन का अर्थ है ऐसा आसन जो शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करें। द्वामी धिरेंद्र ब्रम्हचारी के अनुसार इस आसनको उध्र्व सर्वांगासन कहते हैं। इस आसन में कंधे पर खड़े होने की मुद्रा बनायी जाती है। सर्वांगासन उत्तानपादासन अर विपरीतकरणीमुद्रा का विकसित रूप हो सकता है।

तकनीक
  • पीठ के बल लेट जायें, हाथ जंघे के अगल बगल और हथेली जमीन पर रहेंगी।
  • धीरे धीरे घुटनों को झुकाये बिना हाथ पर दबाव बनाते हुए पैरों को उठायें। 300 के कोण पर रुक जायें।
  • पैरों को थोड़ा और उठाये और 600 के कोण पर रुक जायेंद्य।
  • अब धीरे धीरे 900 के कोण पर ले आयें।
  • हाथों पर दबाव बनाते हुए नितम्बों को उठाते हुए पैरों को सिर की तरफ ले आयें। पैर, पेट और सीने को उठायें। एक सीधी रेखा बनाये। आधार के लिये हथेली को पीठ पर लगा दें।
  • ठुड्डी को सीने के साथ लगा दे (ग्रीवा चिन्ह)। 
    जब तक हो सके इस मुद्रा को बनाये रखें।
  • धीरे धीरे मूल स्थिति में वापस आ जायें। ऐसा करते समय, पहले पीठ को हाथ से सहारा देते हुए नितम्बों को वापस लायें; धीरे धीरे नितम्बों को जमीन पर टिका दें और पैरों को 900 डिग्री के कोण पर ले आयें।
  • धीरे धीरे पैर नीचे ले आयें; उन्हें घुटनों से मोड़े बिना जमीन पर रखें; और पीठ के बल वापस मूल स्थिति में आ जायें।
लाभ
  • यह आसन असमय बुढ़ापे के लक्षणों को और असमय सफेद हो रहे बालों से बचाता है।
  • यह अपच, कब्ज, हार्निया और आंत्र सम्बन्धी बीमारी, बवासीर, गर्भाशय भ्रंश और एंडोक्राईन ग्रंथि से सम्बन्धित बीमारियों में यह बहुत लाभकारी है।
सावधानी
  • उच्च रक्त चाप, मिर्गी, गर्दन का दर्द, सायटिका, और कमर दर्द में इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिये।


शशांक का अर्थ है खरगोश। इस मुद्रा में खरगोश का रूप ले लेता है, इसलिये इसका यह नाम पड़ा है।

तकनीक
  • वज्रासन में बैठ जायें। रीढ़ की हड्डी सीधे रखें।
  • दोनो घुटनों को चैड़ा करें जबकि पंजों को एक साथ बनायें रखें।
  • दोनो हाथों को सिर के ऊपर उठायें। भुजाओं को कंधों के चैड़ाई तक फैलायें।
  • साँस छोड़ते हुए, कमर से आगे की तरफ झूकें और भुजाओं को सीधे रखें।
  • थोड़ी और भुजाओं को फर्श पर रखें।
  • सामने देखें और आरामदेह रहने तक इस स्थिति को बनाये रखें।
  • पीछे वापस आते समय, धीरे धीरे मूल स्थिति में वापस आयें।
लाभ
  • यह आसन जिगरम गूर्दों, और अन्य जीवनी अंगों के क्रियाकलापों को विकसित करता है।
  • यह प्रजनन सम्बन्धी अंगों को सुदृढ़ करता है।
  • यह पेट और पेड़ू को मजबूती प्रदान करता है।
  • यह आसन सायटिका नर्व के दर्द में आराम देता है।
सावधानी
  • जिन व्यक्तियों को पीठ दर्द रहता हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये।

sirsana

शीर्ष का अर्थ है सिर। इस आसन में व्यक्ति सिर के बल खड़ा होता है, इसलिये यह शीर्षासन कहलाता है।
तकनीक
  • फर्श पर एक मोड़े हुए कपड़े को रखें और उसके पास झुक जायें।
  • अंगुलियों को कसकर आपस में फँसाकर हथेली को एक कप का आकार दें और उन्हें मोड़े हुए कपड़े पर रख दें।
  • सिर को कपड़े पर ऐसे रखें कि सिर का शीर्ष भाग हथेलियों को छू रहा हो।
  • पंजो को सिर की तरफ खींचते हुए घुटनों को फर्स से उठायें। अराम से फर्श से झुलते हुए मुड़े हो घुटनों के साथ पैरों को फर्श से ऊपर कर लें।
  • जब शरीर इस स्थिति में संतुलित हो जाये, धीरे धीरे आराम से पैरों को सीधा करें। संतुलन बनाये बिना अचानक पैर उठा लेने से गिरने का डर रहता है। इस आसन में संतुलन बनाने में थोड़ा समय लगता है।
  • सामथ्र्य के अनुसार इस मुद्रा में बने रहें। विपरीत दिशा में घुटनों को मोड़ते हुए और फर्श उन्हें लगाते हुए वापस आ जायें।
लाभ
  • यह सिर की तरफ रक्त परिसंचरण करता है, इसप्रकार स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  • यह आसन तंत्रिका तंत्र और एंड्रोकाईन ग्रंथि को मजबूत और स्वस्थ बनाता है।
  • यह आसन पाचन तंत्र के लिये उपयोगी होता है।
  • यह गले की अकड़न, जिगर और तिल्ली की बीमारी में उपयोगी है।
  • यह पियुष और पिनियल ग्रंथि के क्रियाकलाप को मजबूत करता है।
सावधानी
  • जिन्हे उच्च रक्त चाप, पुराना जुकाम, कान बहना, हृदय की बीमारी और सर्विकल स्पंडोलाईटिस हो उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिये।
  • शुरू में इसका अभ्यास बहुत कम समय के लिये करना चाहिये।

trikonasana

त्रिकोणासन (ट्रायेगुलर पॉश्चर)
त्रिकोण का अर्थ तिकोन होता है। इस आसन में, शरीर तिकोना आकार बनाने लगता है, इसलिये इसका नाम त्रिकोणासन है।

तकनीक
  • दोनो पैरो को एक साथ सीधा करके खड़े हो जायें , हाथों को जाँघों के बगल में रखें।
  • फिर पंजों को 2 -3 फीट अलग कर लें और भुजाओं को फैलाते हुए कंधों के स्तर तक ले आयें।
  • धीरे धीरे साँस लें, अपने दाहिने हाथ को सर के ऊपर ऐसे ले जायें, जिससे कि वह कान को छूता रहे।
  • अब, धीरे धीरे साँच छोड़ते हुए, अपने आपको बायें तरफ झुकायें। अपने घुटने न मोड़े न ही अपने हाथ को कान से अलग करें। अंतिम स्थिति में आपका दायाँ हाथ जमीन के समनांतर लगने लगेगा और आपका बायां हाथ बाये पैर के साथ रहेगा लेकिन उसपर टिकेगा नहीं।
  • अंतिम स्थिति को सामान्य रूप से साँस लेते हुए बनायें रखें।
  • साँस लेते समय, धीरे धीरे सामान्य स्थिति में आयें।
  • इसी प्रक्रिया को दूसरी तरफ भी दोहरायें।
लाभ
  • इस आसन के अभ्यास से पीठ दर्द में आराम मिलता है और कुल्हे मजबूत होते हैं।
  • शरीर हल्का हो जाता है। फेफड़ों की बीमारियाँ और त्वचा के फोड़े और मुहाँसे ठीक होते हैं।
  • इस आसन की यह भी विशेषता है कि यह बढ़ते हुए बच्चों की लम्बाई बढ़ने में भी मदद करता है।
  • धीरे धीरे अभ्यास करने पर यह आसन सायटिका के मरीज के लिये भी लाभकारी होता है।
सावधानी

  • तेज पीठ दर्द में इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिये।

ustrasana

“ऊष्ट्र” का अर्थ होता है ऊँट। इस मुद्रा में शरीर एक ऊँट का आकार ले लेता है, इसलिये इसका नाम पड़ा है।

तकनीक
  • जमीन पर घुटनों के बल आ जायें। अपने जाँघों और पंजो को एक साथ रखें, पंजे पीछे की तरफ रहे और जमीन पर टिकाये रहें।
  • घुटनों और पंजों को एक फुट की दूरी पर चैड़ा करें और घुटनों पर खड़े हो जायें।
  • साँस लेते समय पीठ पीछे झुकायें। पीछे झुकते समय गर्दन को अ़चकाये नहीं।
  • साँस छोड़ते हुए दाहिने हथेली को दाहिने एड़ी पर रखें और बायें हथेली को बायें एड़ी पर।
  • अन्तिम स्थिति में, जाँघ फर्श पर लम्बवत होना चाहिये और सिर पीछे की तरफ झुके रहेगा।
  • इस आसन का अभ्यास सर्वांगासन के बाद विपरीत मुद्रा के रूप में सर्वांगासन के लाभ को बढ़ाने के लिये किया जाता है।
लाभ
  • ऊष्ट्रासन दृष्टिदोष में बहुत लाभकारी है।
  • यह पीठ दर्द और गर्दन के दर्द में बहुत लाभकारी है।
  • Iयह पेट के वसा को कम करने में मदद करता है।
  • यह पाचन प्रणाली की समस्या में उपयोगी है।
सावधानी
  • उच्च रक्त चाप, हृदय की बीमारी, हार्निया के मरीज को ये आसन नहीं करना चाहिये।

vajrasana

इसे साधनात्मक मुद्रा भी कह सकते हैं। साधना के लिये अभ्यास करने पर अंतिम स्थिति में व्यक्ति की आँखें बंद हो जाती हैं।

तकनीक
  • दोनो पैरों को एक साथ फैलाकर बैठें हाथों को शरीर के बगल में लगायें , हथेली जमीन रहें और अंगुलियों आगे की दिशा में।
  • दाहिने पैर को घुटनों से मोड़ें और दाहिने नितम्ब के अन्दर दाहिने पंजे को रखें।
  • इसी प्रकार बायें पैर को मोड़ते हुए बायें पंजे को बायें नितम्ब के अन्दर रख लें।
  • दोनो एडि़यों को इस प्रकार जमायें कि अंगुठे एक दूसरे पर चढ़ जायें।
  • नितम्ब को एडि़यों के बीच के स्थान में स्थित करें।
  • हाथों को सम्बन्धित घुटनों पर रखें।
  • रीढ़ की हड्डी सीधी रखें, सामने दृष्टि लगायें या आँखें बंद कर लें।
  • मूल स्थिति में लौटते समय, थोड़ा सा आगे की तरफ झुक जायें, बायें पैर को बाहर निकाल कर फैला लें।
  • इसी प्रकार दाहिने पैर को फैलाते हुए मूल स्थिति में लौट आयें।
लाभ
  • यह आसन जाँधों और टखनों की पेशी को मजबूत करता है।
  • यह आसन पाचन प्रणाली के लिये अच्छा होता है।
  • यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत आधार देता है और सीधा रखता है।
सावधानी
  • बवासीर के मरीज को यह आसन नहीं करना चाहिये।

Siddhasan

साधना के लिये सभी हठयोग के ग्रंथों में सिद्धासन को स्वीकृत किया गया है। संस्कृत में सिद्ध का अर्थ है प्राप्तए पूर्णए पहुँच जानाए पा लेना। यह कहा गया है कि सिद्धासन बोध की प्राप्ति की तरफ ले जाता है जो कि हठसाधना का परम उद्देश्य हैए इसी इसे इसका नाम पड़ा है।

तकनीक
  • जमीन पर बैठ जायेंय बायें पैर के एड़ी को गुदा द्वार के सामने रखें और दाहिये पंजे को शिवानिनादी या चित्रक्यानादि के साथ अंडकोष के अन्दर रखें।
  • दोनो पैरों के पंजे जाँघों और पिण्डलियों के बीच में रहने चाहिये।
  • हाथों को सम्बन्धित घुटनों पर ज्ञानमुद्रा में रखें।
  • इस मुद्रा में बैठने के दौरान रीढ़ की हड्डी और पूरा शरीर बिल्कुल सीधा होना चाहिये।
  • अपनी दृष्टि को इन पाँच बिंदुओंध्तरीकों पर किसी एक पर लगायें- भ्रुमध्य ,भौंह के बीच मेंद्धए समद्रष्टि ,सीधेद्धए नासिकाग्र ,नाक के सिरे परद्धए अर्धोन्मेष ,पलके आधी खुली हुईंद्धए नेत्र बंद ,पलकें पूर्ण बंदद्ध।
लाभ
  • इस आसन के अभ्यास से विषय भोग की जाँच हो जाती है और ब्रम्हचर्य मिलता है।
  • यह आसन मानसिक अनुशासन प्रदान करता हैय सुषुम्ना नाड़ी में प्राण के रास्ते को निश्चित करता है और कुंडालिनी जगाने में मदद करता है।

Gomukhasan

संस्कृत भाषा में “ गोमुख“ का अर्थ होता है गाय का मूँह। इस आसन में, पैरों की स्थिति गाय के मूँह जैसे हो जाती है। इसलिये इसे गोमुखासन नाम से जाना जाता है।

तकनीक
  • सीधे बैठ जायें, दोनो पैरों को सामने सीधा फैलायें। दोनो हाथों को अगल बगल रखें हथेली को जमीन पर रखें, और अंगुलियों को सामने के तरफ करें।
  • बायें पैर को घुटने से मोड़ते हुए दाहिने पैर के नितम्ब के पास रख दें।
  • इसी प्रकार दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए; बायें पैर के ऊपर लाते हुए दाहिने एड़ी को बायें नितम्ब पर रख दें।
  • बायें हाथ को ऊपर उठायें, कोहनी से मोड़ें और उसे पीठ की तरफ कंधे से नीचे ले जायें।
  • दाहिना हाथ उठायें, कोहनी से मोड़ें और पीठ की तरफ ऊपर ले जायें।
  • पीठ के पीछे दोनो अंगुलियों को आपस में फंसा लें।
  • अप सर को कोहनी के विपरीत जितना हो सके पीछे जितना संभव हो सके ले जाने का प्रयास करें।
  • जब तक आसानी से रह सकें इसी मुद्रा में रूकें और मूल स्थिति में वापस आ जायें।
  • पैरो और हाथों की स्थिति को बदलकर इस अभ्यास को दोहरायें।
लाभ
  • इस आसन के अभ्यास से पीठ और द्विशिर पेशी (बाईसेप्स) की पेशियों को मजबूती मिलती है।
  • यह कुल्हे और निछले हिस्से के दर्द को मिटाता है।
  • यह रीढ़ की हड्डी को सीधा रखने में मदद करता है।
  • यह आसन अर्थराईटिस और सूखे बवासीर में बहुत उपयोगी है।

सावधानी
  • जिन्हें रक्त बवा़सीर हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये।

simhasana

यह मुद्रा सिम्हासन के नाम से जाना जाता है क्योंकि जीभ निकालने से चेहरा किसी गरजते हुए क्रोधी शेर जैसा दिखने लगता है। संस्कृत में ßसिम्हß का अर्थ ßशेरß होता हैS] इसीलिये इसका नाम पड़ा।

तकनीक
  • दोनो एडि़यों को स्क्रोट्रम के नीचे विपरीत दिशाओं मे (जैसे बायें एड़ी को दाहिने ओर और दायें एड़ी को बायें ओर) रखें और ऊपर की तरफ घुम जायें।
  • पिंड्ली के सामने के सिरे को और हाथों को जमीन पर रखें। मूँह को खुला रखें। जालन्धर बंध लगायें और दृष्टि को नाक के सिरे पर लगायें।
  • यह सिम्हासन है।
लाभ
  • यह आसन सामान्य तौर सभी पेशियों में खिंचाव ला देता है और खास तौर पर गर्दन और चेहरे के पेशियों पर।
  • यह आँखों और गले के लिये अच्छा व्यायाम है।
  • यह पेट की पेशियों के लिये अच्छा व्यायाम है।
  • यह रक्त परिसंचरण को सुदृढ़ करता है।
  • यह आवाज सम्बन्धी समस्या में लाभकारी है।
  • यह थायराईड के क्रियाकलाप को नियंत्रित करता है।

सावधानी
  • घुटनों या कुल्हों के अर्थराईटिस के मरीज] तेज पीठ दर्द और संतुलन में कमी होने पर यह आसन नहीं करना चाहिये।

ArdhMatsyendraasan

अर्धमत्स्येंद्रासन का नाम महान योगी मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर पड़ा। प्रारंभिक स्थिति में इस आसन को पूर्ण रूप से कर पाना मुश्किल होता है। इसलिये इसको रूपांतरित किया गया। इस रूपांतरित रूप को अर्धमत्स्येंद्रासन कहते हैं।

तकनीक
  • जमीन पर बैठ जायें। बायें पैर को मोड़ें जिससे एडि़याँ नितम्ब के बगल को छू रही हों।
  • दाहिने पंजे को जमीन पर बायें घुटने के पास रखें।
  • बायें हाथ को दाहिने घुटने के पास रखें और बायें हाथ से दाइने पैर की अंगुलियों को पकड़ लें।
  • दाहिने हाथ को कमर की तरफ से पीठ के पीछे लेकार पीछे से नाभि को छूने की कोशिश करें।
  • अपने सिर को दाहिने तरफ घुमाकर पीछे देखने की कोशिश करें।
  • दूसरे तरफ से दोहरायें।
लाभ
  • यह आसन एड्रिनल ग्रंथि, गूर्दे, जिगर और तिल्ली के लिये लाभकारी है।
  • यह कब्ज, दमा, अपच और मोटापे को दूर करने में मदद करता है।
  • यह रीढ़ और पीठ की पेशी को मजबूती और लचीलापन प्रदान करता है।
  • यह झुकते हुए कंधों, पीठ का टेढ़ापन और मुद्रा की गड़बड़ी को ठीक करता है।
  • यह कंधों, कुल्हों और गर्दन में खिंचाव और मजबूती लाता है।
  • यह मधुमेह के रोगियों के लिये लाभकारी है।

सावधानी
  • जिनकी पीठ में अकड़न हो उन्हें यह आसन सावधानी से करनी चाहिये। गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिये।
yogasana

इस आसन के लिये, “प्राणायाम बहुत आवश्यक है”, इसलिये इसे योगासन कहते हैं। इस आसन को करते हुए कुम्भक करना चाहिये।

तकनीक
  • पद्मासन में बैठिये।
  • दोनो हाथों को पीछे ले जायें, शरीर को सीधा खिंचते हुए दाहिने कलाई को बायें हाथ से पकड़ लें।
  • धीरे धीरे शरीर को आगे की तरफ झुकाते हुए थोड़ी को जमीन पर टिकायें।
  • दृष्टु को स्थिर बनाये रखें। कुछ समय तक रुकने के बाद धीरे मूल स्थिति में वापस लौट जायें।
लाभ
  • यह पाचन को सुदृढ़ करता है और कब्ज को दूर करता है।
  • शरीर में चमक पैदा होती है।
  • यह अभ्यास एकाग्रता विकसित करने में लाभकारी है।
  • इस आसन के अभ्यास से श्वसन सम्बन्धी बीमारी प्रबंधित की जा सकती है।
mandukasan

मण्डुक का अर्थ है मेंढ़क। इस मुद्रा के अन्तिम स्थिति में शरीर मेंढ़क का रूप ले लेता है; इसलिये इसका नाम पड़ा है।

तकनीक
  • वज्रासन में बैठ जायें।
  • अंगूठे को अंदर करके मुट्ठी बाँधें। मुट्ठी को नाभि के पास रखें और उनपर दबाव डालें।
  • धीरे धीरे साँस छोड़ते हुए, कमर से आगे की तरफ झूकें; सीने को नीचें लाये ताकि जाँघ पर आ सकें।
  • सिर और गर्दन को ऊपर उठायें; दृष्टि को सीधा रखें।
  • आरामदेह स्थिति तक रहने तक मुद्रा बनाये रखें।
  • धीरे धीरे वज्रासन में वापस आ जायें और आराम करें।
लाभ
  • यह आसन पेट की बीमरियों और निकले हुए पेट के लिये लाभकारी है।
  • यह अपच और कब्ज को दूर करने में मदद करता है।
  • यह पेट के जहरीले गैस को निकालता है और उदर वायु को दूर करता है।

सावधानी
  • जिन व्यक्तियों को पीठ दर्द रहता है उन्हें इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिये।

uttanmandukasan

“उत्तान” का अर्थ है सीधा और “मण्डुक” का अर्थ है मेढ़क। उत्तानमण्डुकासन में अन्तिम स्थिति एक सीधे मेढ़क जैसी लगती है, इसलिये इसका यह नाम पड़ा है। मण्डुकासन में, सिर कोहनियों द्वारा पकड़ा हुआ होता है।

तकनीक
  • वज्रासन में बैठ जायें।
  • दोनो घुटनों चैड़ाई में फैलायें और पंजो को एक साथ रहनें दें।
  • अपने दाहिने भूजा को उठायें, मोड़े और उसे पीछे ले जायें और दाहिने कंधे से हथेली को बायें कंधे पर रखें।
  • अब, इसी प्रकार बायें भुजा को मोड़ें और हथेली को दाहिने कंधे पर रखें।
  • मुद्रा को बनाये रखें। वापस आते समय, धीरे धीरे बाये हाथ को उठाये फिर दाहिने हाथ को; घुटनों को पूर्ववत स्थिति में वापस ले आयें।
लाभ
  • यह आसन पीठ दर्द और गर्दन के दर्द में उपयोगी है।
  • यह डायफ्राम के गति को विकसित करता है।

padmamayurasan

मयूर का अर्थ है मोर। इस आसन में,शरीर मोर का आकार लेता है।

तकनीक
  • वज्रासन में बैठ जायें। घुटनों को खोलें घुटनों को जमीन पर टिका कर झुकें।
  • आगे की ताफ झुक जायें,अपने हाथ के अंगुलियों को बाहर की तरफ खींचते हुए हथेली जमीन पर रखें और अंगुलियाँ पंजों के तरफ रहेंगी।
  • दोनो अग्रबाहुओं को एक साथ लगाकर कोहनियों को मोड़े। कोहनियों को नाभि के दोनो तरफ लगायें सीना ऊपरी बाँह के पीछे रहेगा।
  • दोनो पैरों में तनाव लायें; दोनो पैरों को एक साथ करते हुए धीरे धीरे सावधानी पूर्वक आगे आयें।
  • शरीर के भार हाथ और कलाईयों पर डालते हुए, पैरों को जमीन से उठायें।
  • सिर और धड़ को आगे की तरफ ले जाएं।
  • सुविधाजनक समय तक इस मुद्रा को बनायें रखें। अन्तिम स्थिति में शरीर दोनो पैरों को एक साथ ताने हुए जमीन के समनांतर हो जाता है।
  • सिर को नीचे ले जाते हुए पीछे आयें; घुटनों को जमीन पर रखें फिर पैरों को रखें।
लाभ
  • इस आसन के अभ्यास से अपच, कब्ज और वायु विकार में आराम होता है। यह पेट के बीमारियों को दूर करने में उपयोगी है।
  • यह दृष्टिदोष के ईलाज में उपयोगी है।
  • यह हाथ और भुजाओं को मजबुती देता है।
  • यह फेफड़ों के लिये भी लाभकारी है।
  • यह मधुमेह का ईलाज भी करता है।
सावधानी
  • जिन्हें हार्नियाँ और पेट सम्बन्धी चोट हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिये।

PadmaJnanaasan

संस्कृत भाषा में *पद्म * से तात्पर्य कमल से है। यह आसन एक पारंपरिक मुद्रा है। इस आसन में, शारीरिक गतिविधि को न्युनतम कर लिया जाता है।
तकनीक
  • जमीन पर बैठ जायें।
  • दाहिने पैर को मोड़ लें और दाहिने पंजे को बायें पैर जाँघ पर नितम्बों के समीप रखें। दाहिने पैर की एड़ी से पेट के बायें भाग पर दबाव बनना चाहिउए।
  • दाहिने पैर को मोड़ लें और दाहिने पंजे को बायें पैर जाँघ पर नितम्बों के समीप रखें। दाहिने पैर की एड़ी से पेट के बायें भाग पर दबाव बनना चाहिउए।
  • हाथों को घुटनों पर ज्ञानमुद्रा में रख लें।
  • रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। सामान्य रूप से सास लें।

लाभ
  • पद्मासन मानसिक शांति और संयम देता है।
  • यह कोकिक्स और सैक्रल क्षेत्र को अधिक रक्त देकर सुदृढ़ करता है।
  • यह पाचन प्रणाली को मजबूत बनाकर कब्ज में आराम देता है।
  • यह एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ाता है।
  • यह साँस की तकलीफ से ग्रस्त व्यक्तियों को मदद करता है।
  • यह पंजों में अधिक पसीना आना, दुर्गंध और गर्म/ठंड संवेदना जैसे समस्याओं को ठीक करने में उपयोगी है।
सावधानी
  • जिन व्यक्तियों को घुटनों के दर्द की समस्या हो उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहियैं।



Source-idayofyoga.org

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