मंगलवार, 30 जून 2015

The Various Forms Of Yoga in hindi

योग के विभिन्न रूप



हठ योग

संकृत में ‘ह’ का अर्थ है सूर्य, और ‘ठ’ का अर्थ है चंद्रमा। आज हठ योग का अभ्यास मुख्य रूप से स्वास्थ्य, फुर्ती और शक्ति के लिए किया जाता है। तंदुरस्त रहने की इच्छा के लिए हठ योग का अभ्यास पूरे संसार में व्यापक रूप से किया जाता है और यह योग का सबसे सामान्य और सबसे व्यापक रूप है।
यह शरीर को स्वस्थ बनाने व लम्बी आयु तक जीने के लिए अभ्यास, फैलाव, और शरीर को स्वतंत्र बनाने की एक अनूठी विधि है, और मन व आत्मा का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, और इस प्रकार यह अभ्यासकर्ता को स्वास्थ्य और आनंद प्रदान करता है।
इसके अतिरिक्त योगी संयोग से बेहद साफ मन वाले बनते हैं और अच्छी तरह से ध्यान को एकाग्र कर सकते हैं। लेकिन कुछ योगी हठयोग का अभ्यास आध्यात्मिकता को प्राप्त करने के लिए एक मुख्य विधि के रूप में करते हैं। उनके साफ मन और शुद्ध, स्वस्थ शरीर उन्हें बेहतर रूप से ध्यान लगाने में सक्षम बनाते हैं।

कुंडलिनी योग

कुंडलिनी का शाब्दिक अर्थ है ”लिपटा हुआ“ और यह आपके रीढ़ के आधार पर एक लिपटे हुए एक लाक्षणिक सांप का प्रतीक है। पश्चिमी संसार में कुंडलिनी, अर्थात ”चेतना का योग“ अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है जो आपके हृदय को खोलता है, शक्ति का निर्माण करता है और आपके रीढ़ के आधार पर स्थित ऊर्जा को मुक्त करती है। कुंडलिनी योग की एक अधिक आध्यात्मिक शैली है। कुंडलिनी योग सांस और गति पर कंेद्रित है। यह अभ्यासकर्ता के लिए शारीरिक और मानसिक चुनौती होता है।
कुंडलिनी योग का सबसे पुराना रूप है-भारत में इसका अभ्यास उपनिषदों द्वारा 500 ईसा पूर्व से किया जा जाता रहा है। सोलह वर्ष की आयु में इसके अभ्यास को सीख कर योगी भजन कुंडलिनी को 1969 में पश्चिम में लेकर आए। शुरू में, इसे सार्वजनिक रूप से नहीं सिखाया जाता था, लेकिन भजन ने इसकी गोपनीयता को चुनौति दी और कुडलिनी को सार्वजनिक रूप से सिखाया और परिणामस्वरूप 3 एचओ की अवधारणा का विकास हुआ, जिसका अर्थ है हैल्थी, हैप्पी, होली ओर्गेनाइजेशन (स्वस्थ, आनंदपूर्ण, पवित्र संगठन)।
कुंडलिनी के अभ्यास का उद्देश्य रीढ़ को सांप से मुक्त करना और आंतरिक शक्ति को मुक्त करना है। स्वास्थ्य, तंदुरस्ती, और सम्पूर्ण आनंद इसके मुख्य लाभ हैं।

भक्ति योग

भक्ति योग, या दिव्य योग उन लोगों का एक स्वाभाविक मार्ग होता है जो संवेगात्मक संतुष्टि और स्वास्थ्य की खोज में होते हैं।
”भक्त“ श्रद्धालु प्राय अपने चारों ओर दिव्यता को देखकर, चिंतन करके और महसूस करके ध्यान का अभ्यास करता है। भक्त अपने हृदय के प्रेम, श्रद्धा को बाहर निकालता है और अपने गहन विचारों और चिंताआंे को ईश्वर के साथ तब तक बांटता है जब तक कि चेतना का एक निंरतर प्रवाह श्रद्धालु और उसके ईश्वर के बीच नहीं बहने लगता।
प्रेम और जीवन शक्ति का यह निरंतर प्रावह ज्ञान की एक परम चेतना को विकसित करता है जिसे प्राय मूड, या भाव कहा जाता है।

कर्म योग

कर्म योग का अर्थ है ”करना“। कर्म का संबंध कारण और प्रभाव के सार्वभौमिक सिद्धांत से है।
प्रत्येक प्रभाव का एक कारण होता है, और श्रद्धालु को पता लगता है कि अपनी वर्तमान की जीवन परिस्थिति में वह विभिनन कारणों के प्रभावों का अनुभव कर रहा है, जो घटित और अभिनित हैं।
वह पहचानता है कि एक अधिक अच्छे, अधिक सम्पूर्ण जीवन के लिए उसे अपने विचारों और भावनाओं को बदलना होगा और इसलिए अपने आपको अपने कार्यों के माध्यम से इस प्रकार अभिव्यक्त करना होगा कि नए कारण पुरानी आदतों और दृष्टिकोणों का स्थान ले लें। नए कारणों को स्थापित करके उसमें अधिक लाभदायक और सफल प्रभावों का विश्वास आ जाता है जो उस पर और उसके चाहने वालों पर पड़ रहे होते हैं।

ज्ञान योग

ज्ञान का अर्थ है बुद्धि या विवेक। ज्ञान योग बुद्धि का मार्ग है और ज्ञान के ध्यान के बहुत से स्वरूप हैं।
ज्ञान ध्यान का मुख्य उद्देश्य मन और भवों को जीवन की माया और भ्रम से दूर ले जाना है ताकि व्यक्ति वास्तविकता या आत्मा को देख सके।
एक “ज्ञानी“ अर्थात विवेक के योगी द्वारा चिंतन करने का एक मुख्य तरीका है सभी विचारों और भावनाओं को धैर्य के साथ मुक्त करना या एक तरफ रखना ताकि मन और हृदय में आत्मा की रोशनी चमक सके और ध्यान में लीन व्यक्ति रूपांतरण और ज्ञान के कार्य कर सके।

राज योग

राज का अर्थ राजसी या शाही। राज योग साधना व्यक्ति के जीवनी शक्ति को प्रेरित करके उसके मस्तिष्क और भावनाओं को संतुलित करने पर आधारित है। यह इस बात को सुनिश्चित करने के लिये किया जाता है कि ध्यान आसानी से साधना के विषय, या सीधे तौर पर ईश्वर पर केन्द्रित किया जा सके।
सामान्य तौर पर,जीवनी शक्ति जीवनी शक्ति मेरूरज्जु में ऊपर नीचे आती जाती रहती है जब तक कि यह संतुलित न हो जाये और मस्तिष्क और भावनायें एक ही विषय में रम न जाये। तब जागरुकता सामान्य तौर पर निचले ललाट के केन्द्र में निर्देशित हो जाती है। साधना बिंदू जो कि भौंहों क मिलने के लगभग आधा इंच ऊपर होता है, इसे अज्न, या तीसरी आँख कहते हैं।

मंत्र योग

मंत्र (या मंत्रम) ऐसे शब्द, वाक्य, या शब्दांश होते हैं जिन्हें विचारमग्न होकर और बढते हुए ध्यान के साथ बोला जाता है।
मंत्र योग ध्यान में शब्द या वाक्य को तब तक बोला जाता है जब तक कि मन और संवेग (भाव) श्रेष्ठ नहीं बन जाते और परम चेतना स्पष्ट रूप से उजागर और अनुभव नहीं होती।
क्योंकि मन प्राय भटकता रहता है, इसलिए मंत्र की लय आसानी से मन का बचाव करती है और इसे व्यक्ति के ध्यान के विषय की ओर वापिस लाती है।
लय और अर्थ मिलकर मन का मार्गदर्शन करते हैं और उसे ध्यान के बिंदु पर वापिस लाते हैं - जो उच्चतर चेतना या विशिष्ट आध्यात्मिक कंेद्र होता है।

तंत्र योग

तंत्र शब्द का अंर्थ है ”प्रसार“। एक तंत्र योगी अपनी चेतना के सभी स्तरों के विस्तार पर ध्यान लगाता है ताकि परम वास्तविकता का पता लगाया जा सके। तंत्र दिव्यता के गतिशील पक्ष पर बल देता है जिसे शक्ति, या ”ब्रह्माण्ड की जन्मदात्री“ कहा जाता है।
तांत्रिक श्रद्धालु आध्यात्मिक गतिशील ऊर्जा के साथ तालमेल करने का प्रयास करता है ताकि व्यक्गित सीमाओं को मिटा सके और अर्धचेतन मन की बाधओं को मुक्त किया जा सके।
वास्तविक तंत्र योग एक शुद्ध मार्ग है, लेकिन कुछ स्व-घोषित अनुयायियों द्वारा इसका गलत प्रयोग किया गया है। तंत्र योग का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के अंदर के स्त्री और पुरुष पक्षों को जगाना और संयुक्त करना है ताकि आध्यात्मिक रूप से ज्ञान प्राप्त किया जा सके और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ब्रह्माण्डीय जन्मदात्री, दिव्य जीवन शक्ति, या आत्मा की अभिव्यक्ति के रूप में समझा जा सके।

क्रिया योग

मूल रूप से क्रिया का अर्थ है आंतरिक कार्य। जब आप आंतरिक कार्य करते हैं तो इसमे शरीर और मन शामिल नहीं होता क्योंकि शरीर और मन अभी भी आपके लिए बाहरी होते हैं। जब आप अपनी ऊर्जा के साथ कार्य करना एक निश्चित स्तर तक सीख लेते हैं तो यह एक क्रिया होती है।
आज आपके विचार एक दिशा मे ंजा सकते हैं। कल यदि कोई दूसरा व्यक्ति आपके पास आता है और आपको प्रभावित करता है, तो ये विचार किसी और दिशा में जाएंगे। इसी तरह से आज आपका शरीर स्वस्थ है इसलिए यह आसनों को पसंद करता है। कल सुबह यदि आपका शरीर एंठ गया है, तो आप आसनों से घृणा करेंगे। आपके संवेग बिलकुल भी विश्वसनीय नहीं होते। वे पल भर में बदल जाते हैं। लकिन आपकी ऊर्जाएं अलग तरह की होती हैं। जब हम ऊर्जा के साथ किसी एक दिशा में कार्य करने लगे जाते हैं, तो इसमें एक अलग तरह की जीवन की गहराई होती है। अचानक आपके जीवन के प्रत्येक पक्ष में एक अलग तरह का आयाम जुड़ जाता है क्योंकि आपकी ऊर्जाएं पूर्ण रूप से एक अलग मार्ग के सम्पर्क में आ चुकी होती हैं और उस मार्ग पर सक्रिय बन चुकी होती हैं।

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