क्या है वन रैंक-वन पेंशन
'वन रैंक वन पेंशन' मतलब अलग-अलग समय पर रिटायर हुए एक ही रैंक के दो फौजियों को समान पेंशन देना। फिलहाल रिटायर होने वाले लोगों को उनके रिटायरमेंट के समय के नियमों के हिसाब से पेंशन मिलती है। यानी जो लोग 25 साल पहले रिटायर हुए हैं उन्हें उस समय के हिसाब से पेंशन मिल रही है जो बहुत कम होती है।
उदहारण:2006 से पहले रिटायर हुए मेजर जनरल की पेंशन 30,300 रुपए है, जबकि आज कोई कर्नल रिटायर होगा तो उसे 34,000 रुपए पेंशन मिलेगी। जबकि मेजर जनरल कर्नल से दो रैंक ऊपर का अधिकारी होता है।
वन रैंक-वन पेंशन की घोषणा किए जाने की उम्मीद लगाए बैठे पूर्व सैनिकों को एक बार फिर निराशा का सामना करना पड़ा। 69वें इंडिपेंडेंस डे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सैनिकों को जहां देश की ताकत, और उर्जा बताया वहीं दूसरी ओर यह भी माना कि उनके सत्ता में आने के बावजूद लंबे समय से लटकी वन रैंक-वन पेंशन (ओआरओपी) की समस्या का फिलहाल कोई समाधान नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री द्वारा इस संबंध में कोई एलान न किए जाने से पूर्व सैनिकों में गहरी नाराजगी है।
क्या है फौजियों की मांग-
फौजियों की मांग है कि 1 अप्रैल 2014 से ये योजना छठे वेतन आयोग की शिफरिशों के साथ लागू हो| फौजियों का कहना है कि असली संतुलन लाना है तो हमें भी 60 साल पर रिटायर किया जाय| हमें तो 33 साल पे ही रिटायर कर दिया जाता है और उसके बाद सारा जीवन हम पेंशन से ही गुजारते हैं| जबकि अन्य कर्मचारी 60 साल तक पूरी तनख्वाह पाते हैं| ऐसे में हमारी पेंशन के प्रतिशत को कम नहीं करना चाहिए|
बहरहाल इस वक्त ये फौजी सिर्फ इतना ही चाहते हैं कि छठे वेतन आयोग को लागू करते हुए समान पद और समान समय तक सर्विस कर चुके फौजियों को एक समान पेंशन दी जाय, चाहे दोनों किसी भी साल में रिटायर हुए हों| अगर ये योजना लागू होती है तो करीब 25 लाख फौजियों या उनके परिवारों को लाभ होगा| इसके लिए हर साल सरकार को करीब 9 हज़ार करोण रुपये का अतिरिक्त भार सहना होगा|
पूर्व सैन्यकर्मियों को मिलेगा फायदा
देश में 25 लाख से ज्यादा रिटायर्ड सैन्यकर्मी हैं। उदाहरण के लिए योजना इस तरह बनाई गई है कि जो अफसर कम से कम 7 साल कर्नल की रैंक पर रहे हों उन्हें समान रूप से पेंशन मिलेगी। ऐसे अफसरों की पेंशन 10 साल तक कर्नल रहे अफसरों से कम नहीं होगी, बल्कि उनके बराबर ही होगी
कब से उठी मांग
वन रैंक-वन पेंशन की मांग रिटायर्ड सैनिक कई सालों से कर रहे हैं। 30 साल पहले एक्स सर्विसमेन एसोसिएशन बनाई गई थी। 2008 में इंडियन एक्स सर्विसमैन मूवमेंट (आईएसएम) नामक संगठन बनाकर रिटायर्ड फौजियों ने संघर्ष तेज कर दिया।
- रिटायर्ड सैन्यकर्मी लंबे समय से वन रैंक-वन पेंशन की मांग कर रहे हैं। वन रैंक-वन पेंशन की मांग को लेकर कई पूर्व सैन्यकर्मियों ने अपने पदक लौटा दिए थे। इसकी पहली वजह यह है कि अभी सैन्यकर्मियों को एक ही रैंक पर रिटायरमेंट के बाद उनकी सेवा के कुल वर्षों के हिसाब से अलग-अलग पेंशन मिलती है।
- छठां वेतन आयोग लागू होने के बाद 1996 से पहले रिटायर हुए सैनिक की पेंशन 1996 के बाद रिटायर हुए सैनिक से 82% कम हो गई। इसी तरह 2006 से पहले रिटायर हुए मेजर की पेंशन उनके बाद रिटायर हुए अफसर से 53% कम हो गई।
- मांग उठने की एक वजह यह भी है कि चूंकि सैन्यकर्मी अन्य सरकारी कर्मचारियों की तुलना में जल्दी रिटायर हो जाते हैं, इसलिए उनके लिए पेंशन स्कीम अलग रखी जाए।
- केंद्र के नौकरशाह औसतन 33 साल तक सेवाएं देते हैं और अपनी आखिरी तनख्वाह की 50% पेंशन पाते हैं। आर्मी में सैनिक आमतौर पर 10 से 12 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं और सैलरी की 50% से कम पेंशन पाते हैं।
क्या है अड़चन?
- ब्यूरोक्रेसी उलझा रही है। अगर सेना में वन रैंक-वन पेंशन लागू होती है तो दूसरी सेवाओं में भी इसकी मांग उठने लगेगी। ऐसे में सरकार इतने संसाधन कहां से लाएगी।
- इसके लिए पैसा आखिर कहां से आएगा।
देरी क्यों?
सरकार इस पर विचार कर रही है कि आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के लिए यह योजना लागू करने के बाद कहीं दूसरे अर्द्धसैनिक बलों (पैरामिलिट्री फोर्सेस) की तरफ से भी इस तरह की मांग न उठे।
हालांकि केंद्र ने अब इस पेंशन योजना के लिए अलग प्रशासनिक और आर्थिक ढांचा तैयार कर लिया है। मार्च 2015 के पहले पूर्ण बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने डिफेंस पेंशन का कुल बजट 51 हजार करोड़ रुपए से 9% बढ़ाकर 54500 करोड़ रुपए भी कर दिया है।
यूपीए सरकार ने भी की थी घोषणा
यूपीए सरकार ने फरवरी 2014 में वन रैंक-वन पेंशन योजना की घोषणा की थी। अंतरिम बजट में इसके लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया था। इसके बाद अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव हुए और यूपीए सत्ता से बाहर हो गई। उधर, मोदी भी सितंबर 2013 में अपनी एक रैली में वादा कर चुके थे कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनी तो इस योजना पर तुरंत अमल होगा। एनडीए सरकार का जुलाई 2014 में पहला बजट आया। इसमें 1000 करोड़ रुपए इस योजना के लिए रखे गए। लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया।
वित्त मंत्रालय की आपत्ति
वन रैंक वन पेंशन पर वित्त मंत्रालय ने कड़ी आपत्ति जताई है। वित्त मंत्रालय ने भारी आर्थिक बोझ पड़ने की आशंका क चलते वन रैंक वन पेंशन पर आपत्ति जताई है। वित्त मंत्रालय वन रैंक वन पेंशन के मूल सिद्धांत से सहमत नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय की दलील है कि वन रैंक वन पेंशन से वित्तीय घाटे का आकलन बिगड़ जाएगा। साथ ही वन रैंक वन पेंशन के अमल में आने से हर साल आर्थिक बोझ बढ़ता रहेगा। वित्त मंत्रालय को सालाना करीब 9,000 करोड़ रुपये के बोझ का अनुमान है। माना जा रहा है कि वन रैंक वन पेंशन के लिए 2 साल पहले तक रिटायर्ड अधिकारियों के आधार पर पेंशन देने का विचार किया जा रहा है।
दो पूर्व सैनिक कर्नल पुष्पेन्दर सिंह और हवलदार मेजर सिंह आमरण अनशन पर बैठे
वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर दो पूर्व सैनिक कर्नल पुष्पेन्दर सिंह और हवलदार मेजर सिंह आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। कर्नल पुष्पेंदर 3 ग्रेनिडियर्स और हवलदार सिंह 3 सिख लाइट इंफ्रैटी बटालियन से जुड़े हैं। बेमियादी भूख हड़ताल पर बैठे कर्नल पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि "हम मर जाएंगे तो हमारी लाश फैमिली लेकर जाएगी, लेकिन बिना मांग माने हम नहीं उठेंगे।"
भूख हड़ताल तोड़ने को लेकर मनाने की कई कोशिशें हुईं। कभी हाथ जोड़े गए तो कभी लाउडस्पीकर से अपील की गई, लेकिन 16 अगस्त से बेमियादी भूख हड़ताल पर बैठे कर्नल पुष्पेंद्र और हवलदार मेजर सिंह ने ठान लिया है कि मोर्चे से नहीं डिगेंगे। हवलदार मेजर सिंह कहते हैं कि जैसे बॉर्डर पर आखिरी गोली तक हम लड़ते रहते हैं, ठीक वैसे ही जब तक जान है तब तक भूख हड़ताल पर रहेंगे।
सरकार के सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि इसको लागू करने पर सरकारी खजाने पर 20,000 करोड़ का बोझ पड़ेगा लेकिन पूर्व सैनिकों का कहना है इसमें केवल 8,300 करोड़ की खर्च आएगा। इसके लागू होने 22 लाख पूर्व सैनिकों और 6 लाख युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की पत्नियों को तुरंत फायदा होगा।
Courtesy-http://hindi.bankersadda.com
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