बहुत पुराना
किस्सा है। एक महात्मा जंगल से गुजर रहे थे।
अचानक सामने
डाकुओं का एक दल आ खड़ा हुआ।
डाकुओं के
सरदार ने कड़क कर कहा, जो भी
माल-असबाब है निकालकर रख दो, वरना जान से हाथ धो बैठोगे। महात्मा उसे देखकर जरा भी नहीं घबराए। उन्होंने
मुस्कराते हुए कहा कि वह तो भिक्षा पर पलने वाले संन्यासी हैं, उनके पास कोई सामान कहां से आएगा। डाकुओं
के सरदार ने अट्टहास करते हुए कहा कि उनके पास भले ही कुछ और न हो पर जान तो है
ही, उसे ही ले
लेते हैं। महात्माजी ने कहा, ठीक है तुम मेरी जान ले लो लेकिन मेरी एक आखिरी इच्छा पूरी कर दो। डाकुओं के
सरदार ने पहले कुछ सोचा फिर मान गया।
उसने महात्मा
जी से पूछा कि वे क्या चाहते हैं? महात्मा ने कहा, सामने के पेड़
से दो पत्ते तोड़ लाओ। डाकू पत्ते तोड़ लाया और महात्मा को देने लगा। महात्मा ने
कहा, ये पत्ते मुङो
नहीं चाहिए। तुम इन्हें वापस पेड़ पर लगा आओ। डाकुओं के सरदार ने हैरान होकर कहा,यह आप क्या कह रहे हैं। कहीं टूटे हुए
पत्ते भी दोबारा पेड़ पर लग सकते हैं? यह तो प्रकृति के विरुद्ध है। महात्म ने समझते हुए कहा,यदि तुम टूटी हुई चीजों को जोड़ नहीं सकते
तो कम से कम उसे तोड़ो भी मत। यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने
का भी तुम्हें कोई अधिकार नहीं है। महात्मा की बातें सुन कर सरदार की आंखें खुल
गईं और वह अपने साथियों के साथ हमेशा के लिए लूटपाट छोड़कर एक सभ्य और नेक इंसान
बन गया।
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational
story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और
फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper
|
OnlineEducationalSite.Com
रविवार, 2 फ़रवरी 2014
डाकू और महात्मा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें