ब्राrाण-ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रrास्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। यही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित
तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी
तिथि निर्धारित की गयी है। वसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अत:
वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व
महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं
जिनकी जिह्वा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। बहुत लोग अपनी इष्ट मां
सरस्वती को मानकर उनकी पूजा-आराधना करते हैं। जिन पर सरस्वती की कृपा होती है, वे ज्ञानी और विद्या के धनी होते हैं। वसंत
पंचमी का दिन मां सरस्वती की साधना को ही अर्पित है। शास्त्रों में भगवती
सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप से करने का विधान है, किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में
देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का विधान चल निकला है। यह ज्ञान का
त्योहार है, फलत: इस दिन
प्राय: शिक्षण संस्थानों व विद्यालयों में अवकाश होता है। विद्यार्थी पूजा स्थान
को सजाने-संवारने का प्रबन्ध करते हैं। महोत्सव के कुछ सप्ताह पूर्व ही, विद्यालय विभिन्न प्रकार के वार्षिक समारोह
मनाना प्रारंभ कर देते हैं। संगीत, वाद- विवाद, खेल- कूद
प्रतियोगिताएं एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। वसंत पंचमी के
दिन ही विजेताओं को पुरस्कार बांटे जाते हैं। माता-पिता तथा समुदाय के अन्य लोग
भी बच्चों को उत्साहित करने इन समारोहों में आते हैं। समारोह का आरम्भ और समापन
सरस्वती वन्दना से होता है। प्रार्थना के भाव हैं- ओ मां सरस्वती ! मेरे मस्तिष्क
से अंधेरे (अज्ञान) को हटा दो तथा मुङो शाश्वत ज्ञान का आशीर्वाद दो!
सरस्वती व्रत
का विधान और फल वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन और व्रत करने से वाणी मधुर होती
है, स्मरण शक्ति
तीव्र होती है, प्राणियों को
सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में
कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता तथा
दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राrाण के द्वारा स्वास्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत
वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से
अलंकृत भगवती गायत्री का पूजन करें। फिर इस प्रकार हाथ जोड़कर मंत्राेच्चार
करें- यथा वु देवि भगवान ब्रrा लोकपितामह:।
त्वां
परित्यज्य नो तिष्ठंन, तथा भव
वरप्रदा।।
वेद
शास्त्राणि सर्वाणि नृत्य गीतादकिं चरेत।
वादितं यत्
त्वया देवि तथा मे सन्तुसिद्धय:।।
लक्ष्मीर्वेदवरा
रिष्टिगरैरी तुष्टि: प्रभामति:।
एताभि:
परिहत्तनुरिष्टाभिर्मा सरस्वति।।
अर्थात देवि!
जिस प्रकार लोकपितामह ब्रrा आपका कभी परित्याग नहीं करते, उसी प्रकार आप भी हमें वर दीजिए कि हमारा भी कभी अपने परिवार के लोगों से
वियोग न हो। हे देवी! वेदादि सम्पूर्ण शास्त्र तथा नृत्य गीतादि जो भी विद्याएं
हैं, वे सभी आपके
अधिष्ठान में ही रहती हैं, वे सभी मुङो प्राप्त हों।
हे भगवती
सरस्वती देवि! आप अपनी- लक्ष्मी, मेधा, वरारिष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा तथा
मति- इन आठ मूर्तियों के द्वारा मेरी रक्षा करें।
उपरोक्त विधि
से पूजन कर मौन होकर भोजन करना चाहिए।
प्रत्येक मास
की पंचमी को सुवासिनी स्त्रियों का भी पूजन करें, उन्हें यथाशक्ति तिल, चावल, दुग्ध व घृत पात्र प्रदान करें और गायत्री
में प्रीयताम् ऐसा बोलें। इस प्रकार वर्ष भर व्रत करें।
व्रत की
समाप्ति पर ब्राrाण को चावलों
से भरा पात्र, श्वेत वस्त्र, श्वेत चंदन, घंटा, अन्न आदि
पदार्थ भी दान करें। यदि हो सके तो अपने गुरू का भी वस्त्र, धन, धान्य और माला आदि से पूजन करें। इस विधि से जो भी सरस्वती पूजन करता है वह
विद्वान, धनी और मधुर
वाणी से युक्त होता है। भगवती सरस्वती की कृपा से उसे महर्षि वेदव्यास के समान
ज्ञान प्राप्त होता है। स्त्रियां यदि इस प्रकार सरस्वती पूजन करती हैं तो उनका
अपने पति से कभी वियोग नहीं होता।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014
सरस्वती पूजन एवं ज्ञान का महापर्व
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