शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

हरी खाद के हैं कई फायदे


                       

मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिए हरी खाद एक सस्ता विकल्प है । सही समय पर फलीदार पौधे की खड़ी फसल को मिट्टी में ट्रैक्टर से हल चलाकर दबा देने से जो खाद बनती है, उसको हरी खाद कहते हैं ।
हरी खाद बनाने के लिए अनुकूल फसलें ढैंचा, लोबिया, उरद, मूंग, ग्वार बरसीम कुछ मुख्य फसलें हैं, जिनका प्रयोग हरी खाद बनाने में होता है। ढैंचा इनमें से अधिक आकांक्षित है। ढैंचा की मुख्य किस्में सस्बेनीया ऐजिप्टिका, एस रोस्ट्रेटा तथा एस एक्वेलेटा अपने त्वरित खनिजकरण पैर्टन, उच्च नाइट्रोजन मात्रा तथा अल्प ब्रूछ अनुपात के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम हैं।
हरी खाद के पौधों को मिट्टी में मिलाने की अवस्था हरी खाद के लिये बोई गई फसल 55 से 60 दिन बाद जोत कर मिट्टी में मिलाने के लिये तैयार हो जाती है । इस अवस्था पर पौधे की लम्बाई व हरी-शुष्क सामग्री अधिकतम होती है। 55 से 60 दिन की फसल अवस्था पर तना नरम व नाजुक होता है, जो आसानी से मिट्टी में कटकर मिल जाता है। इस अवस्था में कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात कम होता है, पौधे रसीले व जैविक पदार्थ से भरे होते हैं। इस अवस्था पर नाइट्रोजन की मात्रा की उपलब्धता बहुत अधिक होती है। जैसे-जैसे हरी खाद के लिये लगाई गई फसल की अवस्था बढ़ती है कार्बन-नाइट्रोजन अनुपात बढ़ जाता है। जीवाणु हरी खाद के पौधों को गलाने सड़ाने के लिये मिट्टी की नाइट्रोजन इस्तेमाल करते हैं। जिससे मिट्टी में अस्थाई रूप से नाइट्रोजन की कमी हो जाती है ।
हरी खाद बनाने की विधि अप्रैल-मई माह में गेहूं की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें। खेत में खड़े पानी में 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से ढैंचा का बीज छितरा लें।
जरूरत पड़ने पर 10 से 15 दिन में ढैंचा फसल की हल्की सिंचाई कर लें ।
20 दिन की अवस्था पर 25 किमी प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया को खेत में छितराने से नोड्यूल बनने में सहायता मिलती है । 55 से 60 दिन की अवस्था में हल चला कर हरी खाद को पुनरू खेत में मिला दिया जाता है। इस तरह लगभग 10.15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है। जिससे लगभग 60.80 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है। मिट्टी में ढैंचे के पौधों के गलने-सड़ने से बैक्टीरिया द्वारा नियत सभी नाइट्रोजन जैविक रूप में लम्बे समय के लिए कार्बन के साथ मिट्टी को वापस मिल जाते हैं।
हरी खाद के लाभ हरी खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की भौतिक शारीरिक स्थिति में सुधार होता है। हरी खाद से मृदा उर्वरता की भरपाई होती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाता है, सूक्ष्म जीवाणुओं की गतिविधियों को बढ़ाता है। मिट्टी की संरचना में सुधार होने के कारण फसल की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। हरी खाद के लिए उपयोग किये गये फलीदार पौधे वातावरण से नाइट्रोजन व्यवस्थित करके नोड्यूल्ज में जमा करते हैं, जिससे भूमि की नाइट्रोजन शक्ति बढ़ती है। हरी खाद के लिये उपयोग किये गये पौधों को जब जमीन में हल चला कर दबाया जाता है तो उनके गलने-सड़ने से नोडयूल्ज में जमा की गई नाइट्रोजन जैविक रूप में मिट्टी में वापस आ कर उसकी उर्वरक शक्ति को बढ़ाती है।
पौधो के मिट्टी में गलने सड़ने से मिट्टी की नमी की जल धारण की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। हरी खाद के गलने सड़ने से कार्बन डाइ आक्साइड गैस निकलती है जो कि मिट्टी से आवश्यक तत्व को मुक्त करवा कर मुख्य फसल के पौधों को आसानी से उपलब्ध करवाती है।
हरी खाद के बिना बोई गई धान की फसल हरी खाद दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में ऐकिनोक्लोआ जातियों के खरपतवार न के बराबर होते है जोकि हरी खाद के ऐलेलोकेमिकल प्रभाव को दर्शाते है।
हरी खाद के हैं कई फायदे अप्रैल- मई माह में गेहूं की कटाई के बाद जमीन की सिंचाई कर लें।
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करनाचाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है:facingverity@gmail.com.पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!
Source – KalpatruExpress News Papper

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें