मंगलवार, 18 मार्च 2014

जीपीएस की निगाह से कोई बच नहीं सकता



कई लोग सफर के दौरान अपनी मंजिल तक पहुंचने और रास्ते से न भटकने के लिए जीपीएस का इस्तेमाल करते हैं। ड्राइवरों के मार्गदर्शन के लिए तो जीपीएस एक नक्शे की तरह काम करता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि जीपीएस केवल नक्शे या किसी जगह को खोजने में ही उपयोगी है बल्कि अब जीपीएस का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में हो रहा है, जिसकी वजह से कभी- कभी इसके अप्रत्याशित नतीजे भी देखने को मिलते हैं।
मूलत: इसका इस्तेमाल सेना से जुड़े कामों के लिए किया जाता था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने यह फैसला लिया था कि जीपीएस की सुविधा आम लोगों के लिए भी उपलब्ध होनी चाहिए और फरवरी 1989 में पहला ब्लॉक 2 सैटेलाइट लॉन्च किया गया।
उस सैटेलाइट के लॉन्च होने के 25 साल बाद लोग जीपीएस का इस्तेमाल ऐसे कर रहे हैं, जिसकी उस वक्त बेहद कम लोगों ने कल्पना की थी।
मंजिल है करीब - 
कुछ समय पहले ऐसा लगता था कि देश के एक कोने से दूसरे कोने तक का रास्ता तलाशने के लिए आपको एक बड़े नक्शे की जरूरत होगी। लेकिन जब अमेरिकी सरकार ने गैर-सैन्य उपयोगकर्ताओं के लिए बेहतर सैटेलाइट सिग्नल उपलब्ध कराने की इजाजत देने के लिए नियमों में बदलाव किया तब कारों में इस्तेमाल करने के लिए जीपीएस उपकरणों की भरमार हो गई। कार में सफर के दौरान सुरीली आवाज में दाहिनी ओर मुड़ें
या 200 गज की दूरी तय कर आप अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे सुनना अब बेहद आम बात है। जीपीएस सिग्नल भले ही ज्यादातर सटीक होता है लेकिन फिर भी कई बार ड्राइवर खुद को बड़ी दुविधा की स्थिति में पाते हैं। साल 2009 में रॉबर्ट जोन्स वेस्ट यॉर्कशायर में जीपीएस की मदद से एक रास्ते की ओर बढ़ रहे थे और उनकी कार एक चट्टान के आखिरी सिरे पर पहुंच गई।
वर्ष 2012 में तीन जापानी पर्यटक ऑस्ट्रेलिया में छुट्टियां मनाने के लिए गए थे और उनकी गाड़ी के जीपीएस सिस्टम ने एक द्वीप तक पहुंचने का रास्ता बताते हुए उन्हें पानी से गुजरकर जाने का संदेश दिया। इस तरह वे ड्राइविंग करने के बजाए तैरने की स्थिति में आ गए थे।
जानवरों पर भी निगरानी-  
दुनिया भर के कई शहरों में यह नजारा बेहद आम होता है कि कई लोग अपनी नजरें स्मार्टफोन के नक्शे में गड़ाए हुए रास्ते पर चलते रहते हैं ताकि उन्हें यह अंदाजा हो कि वे कहां जा रहे हैं। प्रोफेसर पार्किसन का कहना है, ज्यादातर लोग अब नक्शा नहीं बल्कि स्मार्टफोन निकालते हैं और फिर वे दिशा गलत होने पर जीपीएस की शिकायत भी करते हैं। जीपीएस का इस्तेमाल जानवरों के विभिन्न समूहों के व्यवहार और गतिविधियों को समझने के लिए भी किया जाता रहा है। जीपीएस उपकरणों को जानवरों के शरीर में लगा कर इस सिद्धांत का परीक्षण किया गया कि किसी शिकारी के डर से भेड़ें कैसे झुंड के बीच में जाने की कोशिश करती हैं। इंग्लैंड के नॉर्थम्बरलैंड में गाय के गले में बांधी जाने वाली घंटी के बजाए जीपीएस कॉलर लगा कर यह पता लगाने की कोशिश की गई कि अपने स्थानीय क्षेत्र में मवेशी कैसे चरते हैं। घायल जंगली चूहों पर भी जीपीएस बैकपैक्स की मदद से परीक्षण किया गया ताकि संरक्षण विशेषज्ञ यह अंदाजा लगा सकें कि जब उन्हें जंगल में दोबारा छोड़ा गया तो उन्होंने कैसे अपने अस्तित्व को बनाए रखने की कोशिश की।
जीवनसाथी की निगरानी?
रॉयल वेटेनरी कॉलेज ने एक जीपीएस टैग के जरिए बिल्लियों की गतिविधियों पर नजर रखी तब घरेलू बिल्लियों की गुप्त जिंदगी से जुड़ी बातें सामने आईं।
इससे यह नतीजा निकला कि कोई व्यक्ति भले ही यह सोचे कि उनकी बिल्लियां पड़ोसी के गार्डन में शिकार की खोज में होंगी जबकि वे दूसरी बिल्ली के मालिकों के घर में खाने का सामान ढूंढ रही होंगी। जो माता-पिता अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं वे अब जीपीएस उपकरणों का इस्तेमाल कर उन पर नजर रख सकते हैं।
ऐसे जीपीएस टैग्स बैग, कपड़े या कलाई वाले बैंड पर लगाए जाते हैं या फिर स्मार्टफोन के जीपीएस ऐप्लिकेशन के जरिए भी उनकी गतिविधि पर निगाह रखी जा सकती है। अभिभावक खुले तौर पर या गोपनीय तरीके से भी जीपीएस उपकरणों का इस्तेमाल कर अपने बच्चों की निगरानी कर सकते हैं।
सही निशाना इससे जुड़े कई दिलचस्प मामले भी सामने आ रहे हैं, मसलन एक पति ने कथित तौर पर अपनी पत्‍नी के मोबाइल फोन में मौजूद जीपीएस फंक्शन का इस्तेमाल कर यह पता लगा लिया कि उनकी पत्‍नी न्यूयॉर्क में एक अलग जगह पर मौजूद हैं जबकि उन्होंने अपने पति को किसी और जगह पर होने के बारे में बता रखा था। प्रोफेसर पार्किसन कहते हैं, क्या गोपनीयता का गंभीर तरीके से उल्लंघन हो रहा है? उन्होंने कहा, मुङो पूरा यकीन है कि ऐसे कई वाकये होते होंगे जब कोई पति अपनी पत्‍नी पर नजर रखने के साथ ही यह जानना चाहते हों कि उनका बच्चा कहां है। मेरी राय में इस तरह की निगरानी में कुछ गलत नहीं है। कुछ जीपीएस उपकरणों में अब ऑडियो सिस्टम भी होता है जिससे आवाज आती है। प्रोफेशनल फुटबॉलर अब जीपीएस का इस्तेमाल अपने खेल में सुधार के लिए कर रहे हैं।
जीपीएस गोलियां भी -
मैनचेस्टर सिटी और लीवरपूल जैसी टीमें भी अब जीपीएस मॉनीटर का इस्तेमाल प्रशिक्षण सत्र के दौरान करती हैं ताकि खिलाड़ियों की रफ्तार, उनके द्वारा तय की जाने वाली दूरी और उनके हृदय गति का अंदाजा लगाया जा सके। अमेरिका के कुछ राज्यों में अपराधियों को पकड़ना पिछले साल से तब आसान हो गया जब पुलिस बल ने जीपीएस गोलियों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कार में भाग रहे अपराधियों का पीछा करना बेहद जोखिम भरा काम हो सकता है लेकिन अगर एक बटन दबा कर जब जीपीएस गोली दागी जाती है, तब वह गोली कार से जुड़ जाती है जिसका अंदाजा ड्राइवर को भी नहीं लग पाता( ऐसे में पुलिस उस गाड़ी पर आसानी से निगाह रख सकती है और उसे पकड़ सकती है। भविष्य में जीपीएस के इस्तेमाल करने के नए तरीकों को ईजाद कर कई तरह के समाधान निकाले जा सकते हैं।
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Source – KalpatruExpress News Papper





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