यह अखबार
महिलाओं द्वारा, महिलाओं के
लिए और महिलाओं का अखबार है। खास बात यह है
कि इन्हें 40 के करीब ग्रामीण महिलाएं निकालती हैं। ये
महिलाएं कम से कम आठवें दज्रे तक
पढ़ी हुई हैं। दो तीन महिलाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने स्नातक और परास्नातक तक शिक्षा
ग्रहण की
हुई है। यह अखबार उत्तर प्रदेश के छह जिलों चित्रकूट, बांदा, महोबा, लखनऊ, बनारस, फैजाबाद और
बिहार के दो जिलों सीतामणि और
शिवहर से निकलता है। यह अखबार ग्रामीण महिलाओं को
सशक्त और स्वावलंबी बनाने के
लिए शिक्षित करने का कार्य करने वाली दिल्ली की निरंतर
संस्था के सहयोग से
निकलता है। खबर लहरिया का प्रकाशन वर्ष 2002 से साप्ताहिक अखबार के
रूप में हो रहा
है।
चित्रकूट, बांदा और महोबा का अखबार वहां की प्रचलित
बोली बुंदेली में, लखनऊ और
फैजाबाद का
अखबार अवधी में, बनारस का भोजपुरी में और बिहार का वज्जिका भाषा में निकलता है। खबर
लहरिया
की प्रबंध सम्पादक मीरा बताती हैं कि प्रति सप्ताह लगभग पांच हजार अखबार बंट
जाते
हैं।
साङी दुनिया-अधिकारों के संघर्ष की
साथी-
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प्रो. रूपरेखा वर्मा |
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अधिकारों के संघर्ष में महिलाओं का साथ देने वाली लखनऊ की साङी दुनिया
यूं तो वर्ष 1980
से काम
कर रही है लेकिन इस संस्था का पंजीकरण वर्ष 2004 में हुआ
था। इस संस्था में
महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए जागरूक किया जाता है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज
उठाने की ताकत दी जाती है। साथ ही
साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाती है। संस्था
की सचिव प्रो.
रूपरेखा वर्मा प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकत्री हैं। साङी दुनिया की उज्मा जकी
बताती
हैं कि इस संस्था की मदद से महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठाने लगी
हैं। बचपन से ही
लड़कियां अपने अधिकारों को जानें, इसके
लिए स्कूल कॉलेजों में लगातार कार्यशालाएं चलाई
जाती हैं जिससे युवा पीढ़ी
में जागरूकता हो। सभी को शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो इसके लिए
भी अभियान
चलाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त महिलाओं को सूचना के अधिकार जैसे अधिकारों
के लिए भी जागरूक किया जाता है। संस्था दुष्कर्म की कई पीड़िताओं की लड़ाई
लड़ रही है।
रेड ब्रिगेड-आत्मरक्षा के गुर -
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25 वर्षीया ऊषा विश्वकर्मा लखनऊ
में रेड ब्रिगेड संस्था चलाती हैं, जिसमें वह युवा लड़कियों
को
आत्मरक्षा के गुर सिखाती हैं।
ऊषा के साथ उसके एक दोस्त ने दुष्कर्म का प्रयास
किया था लेकिन ऊषा ने उसका डटकर
मुकाबला किया और भाग खड़ी हुईं। दो
वर्षो तक अवसाद में रहने के बाद ऊषा ने तय किया
कि वह खुद आत्मरक्षा के
गुर सीखेगी और अन्य लड़कियों को भी सिखाएगी। उसने रेड ब्रिगेड
की
स्थापना कर अन्य लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। वह देश के
विभिन्न नगरों में
जाती है। वर्तमान में उसके साथ पूरे देश से लगभग आठ
हजार लड़कियां जुड़ी हुई हैं। ऊषा
बताती है कि आत्मरक्षा के गुर सिखाने
के अलावा लड़कियों को उनके अधिकारों की जानकारी
भी दी जाती है। ऊषा और
उसके दल ने केरल, असम, बनारस, भदोही, दिल्ली
जाकर लड़कियों
को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया है। उनके कार्यो से
प्रभावित होकर पुर्तगाल में 90 मिनट का
वृत्तचित्र भी बनाया
गया है।
ऊषा बताती हैं कि मेरे साथ जो हुआ अगर वह नहीं
होता तो इतनी सारी लड़कियां आत्मरक्षा
के गुर नहीं सीख पातीं।
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वनांगना-वन की स्त्रियों की आवाज-
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महिलाओं के हक के लिए संघर्ष करते हुए वनांगना को
अब करीब दो दशक हो रहे हैं।
वनांगना अपने नाम के अनुरूप वन की स्रियों
के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य कर रही है।
चित्रकूट और बांदा में मुख्य
रूप से सक्रिय वनांगना ने उन्हें शिक्षित किया है, रोजगार
के लिए
तैयार किया है और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना सिखाया है।
वनांगना की दलित,
मुस्लिम, कोल
और कभी अनपढ़ रही बुन्देलखण्डी महिलाएं इस संस्था से जुड़ी हैं ।
संस्थापिका
माधवी कुकरेजा बताती हैं, वनागंना का उद्देश्य महिलाओं
को उनके अधिकार के लिए लड़ना
सिखाना, उनमें जागरूकता पैदा करना, साक्षर
करना, रोजगार
के लिए प्रशिक्षण देना, घरेलू हिंसा
के खिलाफ आवाज
उठाना, कानूनी
मदद देना है। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट और बांदा क्षेत्र में
पिछले 20 सालों
से वनांगना संस्था महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है।
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सनतकदा-महिला बुनकरों का समाज-
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लखनऊ स्थित सनतकदा संस्था
बुनकरों एवं हस्तशिल्पियों की संस्था है। इसमें महिलाओं
की भागीदारी
काफी अधिक है। ये वे लोग हैं जिन्हें बिचौलियों के कारण अपनी मेहनत का
आधा पैसा भी नहीं मिलता था। वर्ष 2006 से सनतकदा की स्थापना करके
बुनकरों को
सीधे ग्राहकों से जोड़ा गया है। सनतकदा के सम्पर्क में आए
बुनकर और हस्तशिल्पी खुद
अपने ग्राहकों से सम्पर्क
करते हैं और अपना
पूरा मेहनताना पाते हैं। वर्तमान में 15 राज्यों
जैसे आसाम, बंगाल,
झरखण्ड, बिहार, आन्ध्रा, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान, कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखण्ड, मध्यप्रदेश,
गुजरात इत्यादि से लगभग 60-70 दलों के 60 हजार हस्तशिल्पी और बुनकर
संस्था से जुड़े
हैं। मेहनताना ठीक से न मिलने के कारण हमारी संस्कृति
से जुड़ी कई हस्तकलाएं धीरे-धीरे
खत्म होने लगी थीं।
सनतकदा के माध्यम
से इन कलाओं को एक नया आयाम मिला है। यह संस्था हर वर्ष
महोत्सव का
आयोजन भी करती है, जिसमें पूरे भारत से कई
हस्तशिल्पी और बुनकर
शिरकत करते हैं।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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