इंसाफ का गुलाबी परचम
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कुछ तुम बदलो, कुछ हम बदलें, देखो ये जमाना बदलेगा, दरिया की कसम, मौसम की कसम,
ये ताना-बाना बदलेगा। महिलाएं दुख सहकर चुप रहती हैं, मुख खोलेंगी, कुछ बोलेंगी तभी तो जमाना बदलेगा - गुलाबी गैंग की संस्थापिका संपत देवी पाल अपनी हर सभा में इन पंक्तियों को ऊंचे स्वरों में दोहराती हैं लेकिन ये पंक्तियां उनके लिए केवल कविता या नारा नहीं हैं। गुलाबी गैंग ने इन पंक्तियों को साकार करके दिखाया है। वह कहती हैं कि महिलाओं को समाज इंसाफ नहीं देगा, उन्हें खुद अपने लिए इंसाफ का रास्ता चुनना पड़ेगा। वर्ष 2006 में बांदा में बने इस संगठन से आज लगभग चार लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं। गाढ़े गुलाबी रंग की साड़ी पहने और हाथ में बांस की लाठी लिए ये महिलाएं उन पुरुषों के लिए आफत बन जाती हैं जो अपनी पत्नी पर जुल्म करते हैं, शराब के नशे में उन्हें मारते-पीटते हैं, दहेज के लालच में जला देते हैं या घर से बेघर कर देते हैं। गुलाबी गैंग की लोकप्रियता का आलम यह है कि उन पर विदेशियों ने किताबें लिखीं हैं। माधुरी दीक्षित और जूही चावला की चर्चित फिल्म ‘गुलाब गैंग’ भी इसी संगठन से प्रभावित मानी जा रही है जो महिला दिवस के एक दिन पूर्व सात मार्च को प्रदर्शित हो रही है। हाल में ही गुलाबी गैंग पर बने निष्ठा जैन निर्देशित वृत्तचित्र ‘गुलाबी गैंग’ को भी काफी सराहना मिली है। हाल में एक बार फिर चर्चाओं में आए गुलाबी गैंग के बारे में विस्तार से बता रही हैं रिया तुलसियानी .
गुलाबी रंग
करुणा, पोषण और प्रेम
का प्रतीक है और यह महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाला
रंग है लेकिन जब हम गुलाबी गैंग का जिक्र करते हैं, तो रंग का यह अर्थ कुछ और व्यापक हो जाता है। यह रंग केवल महिलाओं का रंग नहीं रह जाता, यह अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं का रंग हो जाता है। यह एक ऐसा रंग हो जाता है जिसके हृदय में भले ही करुणा और प्रेम हो लेकिन जो अपने अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष भी करता है। यह ऐसी महिलाओं का नुमाइंदा हो जाता है जिनके हाथों में इंसाफ की लाठी है। हमारे समाज में एक तरफ महिलाओं को देवी स्वरूप माना जाता है, दूसरी तरफ सिर्फ भोग की वस्तु। दशकों पहले से लेकर अब तक अनगिनत ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं जिसमें महिलाओं पर लगातार अत्याचार हुए हैं, उनकी अस्मिता से खेला गया है, तेजाब से चेहरे जलाए गए हैं, मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया है।
पर इतना सबकुछ
सहने के बाद भी महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी है। अपने हक के लिए
उनकी लड़ाई निरंतर जारी है। कई और लड़ाइयों के बीच गुलाबी गैंग का इतिहास भी वही दर्दनाक कहानी बताता है जिसकी वजह से इस संगठन की स्थापना हुई। संपत पाल ने महिलाओं के दर्द को गहराई से समझ। एक बार उन्होंने किसी महिला को पति के हाथों पिटते देखा। उनसे रहा न गया और उन्होंने उस अत्याचारी पति को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह टस से मस न हुआ।
संपत ने उसी
वक्त गांव की कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर सबके हाथ में बांस की एक-एक लाठी
पकड़ाई।
सारी महिलाओं
ने मिलकर लाठी से उस व्यक्ति की जमकर पिटाई की। उस दिन से वे सभी
महिलाएं एक संगठन के रूप में एकजुट हो गईं। धीरे-धीरे 10 हजार महिलाएं जुट गईं।
बांदा के
अतिरिक्त इटावा, इलाहाबाद, कानपुर, उन्नाव, कौशांबी, फरुखाबाद, रायबरेली, कर्वी, चित्रकूट,
महोबा, हमीरपुर, लखनऊ, जालौन, फतेहपुर, बिजनौर इत्यादि जिलों से चार लाख महिलाएं गुलाबी गैंग के साथ अपने-अपने क्षेत्रों में महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। इस संस्था का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण महिला के हुनर को पहचान कर आर्थिक स्वावलंबी और सशक्त बनाना भी है जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास की बढ़ोतरी हो। वे अपने सपनों में पंख लगाकर उड़ सकें। दिल में दबे अरमानों को पूरा कर सकें। गुलाबी गैंग ने कई महिलाओं को शादी-ब्याह में इस्तेमाल होने वाले पत्तल बनाना सिखाया है। इसके अलावा वे महिलाएं शादी व अन्य आयोजनों में फूलों की सजावट, मेहंदी, मेकअप, दुल्हन के कपड़े की सिलाई इत्यादि का काम भी करती हैं। संपत की ख्याति देश में नहीं, विदेश तक भी पहुंच चुकी है। विदेश में उनकी संघर्ष गाथा पर बने दो वृत्तचित्र और एक किताब लिखी गई है, जिससे मिले पैसों से 90 सिलाई मशीनें खरीदकर उन्होंने फतेहपुर और बांदा में सिलाई सेंटर खोले हैं ताकि सिलाई कर लेने वाली महिलाएं कपड़े सिलकर अपना जीवनयापन कर सकें। साथ ही गुलाबी गैंग ने बाल विवाह जैसी दकियानूसी परंपराओं को भी तोड़ा है।
संपत पाल ने
महिलाओं के दर्द को गहराई से समझ। एक बार उन्होंने किसी महिला को पति के
हाथों पिटते देखा। उनसे रहा न गया और उन्होंने उस अत्याचारी पति को रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह टस से मस न हुआ। संपत ने उसी वक्त गांव की कुछ महिलाओं को इकट्ठा कर सबके हाथ में बांस की एक-एक लाठी पकड़ाई।
गुलाबी गैंग
की कार्यप्रणाली कानून का उल्लंघन करती है, इस पर आपका क्या कहना है?
आखिर हम महिलाएं कब तक कानून का इंतजार
करेंगी। भाड़ में जाए ऐसा कानून जिसमे महिला
दुष्कर्म के बाद कई पुलिस कर्मियों के द्वारा रिपोर्ट लिखने के बजाय मामला रफा दफा करने की सलाह दी जाती है। निर्भया कांड के बाद कई कानून बने लेकिन दुष्कर्म की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। क्या फायदा ऐसी पुलिस और प्रशासन का जिसमें नालायकों को देश की सेवा के लायक समझ गया है? जो खुद महिलाओं का सम्मान नहीं करते, वे दरिंदों से क्या बचायेंगे? इसलिए हमें खुद अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में महिलाएं परचम लहराएंगीं।
गुलाबी गैंग
के लिए भविष्य की योजनाएं क्या हैं?
मैं भविष्य
में विश्वास नहीं रखती। मैं जो हूं,आज हूं।
जब तक जिंदा
हूं गुलाबी गैंग द्वारा महिलाओं के लिए काम करती रहूंगी। मेरी मृत्यु के बाद
गुलाबी गैंग बचेगा या खत्म हो जाएगा इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकती। जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, जो भविष्य सोचते हैं मैं उन्हें अक्लमंद नहीं मानती। सिर्फ उम्मीद करती हूं कि मेरी बहनें इस संगठन के माध्यम से मेरे बाद भी पीड़ितों की मदद करती रहेंगी।
आप के साथ की
कुछ महिलाओं जैसे चुन्नी मिश्रा, किरन मिश्रा, आशा निगम और अंजू शर्मा ने
आपका साथ छोड़ दिया है क्यों?
उन्हें कुछ और
करना था, इसलिए उनका
जाना ही अच्छा है। देश स्वतंत्र है जो चाहे करें। वह अपने
मन से आईं और अपने मन से हटीं। अब वे गुलाबी सेना बनाएं या गुलाबी संगठन क्या फर्क पड़ता है। गुलाबी गैंग बनाएंगी तो वह सिर्फ संपत पाल का है। मेरा काम है महिलाओं को इंसाफ दिलाना और मैं मरते दम तक दिलाती रहूंगी। चाहे कोई साथ रहे या न रहे। मदद के लिए मैंने सरकार से कभी पैसे नहीं लिए हैं। किसी आंदोलन में जाने के लिए ट्रेन में नि:शुल्क जगह मिल जाती है।
गुलाबी साड़ी
पहनने का कारण क्या है?
एक बार 200 महिलाएं आंदोलन के लिए ट्रेन से कहीं जा
रही थीं। अधिक महिलाएं होने के कारण
एक महिला ट्रेन में सोती रह गई, हम भी पहचान नहीं पाए और ट्रेन आगे निकल गई। तभी मैंने तय किया कि सब एक जैसी साड़ी पहनेंगे। अपने संगठन की महिलाओं से चंदा इकट्ठा किया। साड़ी के रंग चुनने में बहुत जद्दोजहद हुई क्योंकि नीला रंग बसपा से, लाल रंग सपा से, पीला रंग गायत्री परिवार से और सफेद रंग ब्रrाकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय से मिला देता। इत्तेफाक से उस दिन 14 फरवरी (वैलेंटाइन डे) था इसलिए मैंने गाढ़े गुलाबी रंग की साड़ियां खरीदीं।
सभी महिलाओं
को गुलाबी साड़ी में देखने के बाद अनायास ही मेरे मुख से ‘गुलाबी गैंग जिंदाबाद’
निकल पड़ा और संगठन का नाम गुलाबी गैंग पड़ गया।
आपके अनुसार
महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने वालों को क्या सजा मिलनी चाहिए?
दुष्कर्म के आरोपी को उम्र कैद या फांसी की
सजा देने से बेहतर है कि उसे समाज में शर्मिदा किया
जाए। उनके गाल पर देशद्रोही, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी जैसे टैटू बनवा दिए जाएं ताकि वे बाहर निकलने लायक न रहें और घुट-घुटकर खुद ही मर जाएं। फांसी से तो फौरन मर जाएंगे।
राजनीति में
आप कितना आगे बढ़ना चाहती हैं?
मुङो लगता है
कि राहुल गांधी के समर्थन में महिलाओं को आगे आना चाहिए। इसलिए मैंने वर्ष
2012 में मणिकपुर (उत्तर प्रदेश) से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन मैं जीत नहीं पाई।
अब अगर लोकसभा
चुनाव में बांदा से टिकट मिलेगा तो जरूर लड़ूंगी लेकिन नहीं मिला तो जो भी
कांग्रेस प्रत्याशी होगा उसका समर्थन करूंगी। हमारे राजनेता महंगाई और भ्रष्टाचार की जड़ें नहीं जानते लेकिन भाषण से देश बदलने की कोशिश करते हैं। अनशन और भाषण से जनता को कोई फायदा नहीं होता है।
‘गुलाब गैंग’ फिल्म के विरोध का क्या कारण है?
मैं अपनी मेहनत से किसी दूसरे का व्यवसाय
नहीं चलने दूंगी। फिल्म मुझसे पूछे बगैर बनाई
गई है। इसका प्रदर्शन तभी होगा जब फिल्म निर्माता और निर्देशक बांदा आकर मुझसे इजाजत लें, मुख्य किरदार का नाम रज्जो से संपत और फिल्म का नाम गुलाब गैंग के बजाय गुलाबी गैंग करेंगे, अन्यथा यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पाएगी। अगर फिर भी वे नहीं माने तो मैं गुलाबी गैंग के डंडे से मनवाऊंगी। फिल्म वालों के द्वारा मुङो लालच भी दिया गया कि फि ल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के द्वारा मुङो सम्मानित कराया जाएगा, लेकिन मैंने इंकार कर दिया।
फिल्म
प्रदर्शन पर आपत्ति किस प्रकार जताई है?
मैंने इस फिल्म के प्रदर्शन के खिलाफ
मुकदमा दायर किया है और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री
मनीष तिवारी से फिल्म के प्रदर्शन पर रोक की मांग की है। कैमरे से महिला सशक्तिकरण नहीं हो सकता है। माधुरी दीक्षित क्या जानें कि गरीबी और गरीबों का दर्द क्या होता है? जब उन्हें मुजफ्फरनगर जाकर दंगा पीड़ितों को कंबल बांटने चाहिए थे तब वह सैफई महोत्सव में ठुमके लगा रही थीं। मुङो आश्चर्य है फिल्म अभिनेता सलमान खान पर जिसके साथ ‘बिग बॉस’ कार्यक्रम के दौरान मैं पांच हफ्ते रही, उसे अपने छोटे भाई की तरह मानने लगी, उसने भी दंगा पीड़ितों की मदद के बजाय सैफई महोत्सव में जाना उचित समझ।
बातचीत आखिर
कब तक कानून का इन्तजार करते: संपत पाल
जुर्म के
खिलाफ उठाई आवाज
संपत पाल ने
अपने आत्मविश्वास के कारण किसी की परवाह नहीं की। महिलाओं का सम्मान न
करने वाले पुलिस और दरोगा भी उनसे बच नहीं पाए। गैंग बनने के शुरुआती दिनों में बांदा में एक सड़क न बनने के कारण गुलाबी महिलाओं ने सड़क जाम कर दी। पुलिसकर्मियों द्वारा असभ्य व्यवहार और महिलाओं को बद्तमीज कहे जाने के कारण संपत ने उनका कॉलर पकड़कर उनका विरोध किया था। इसी तरह एक बेकसूर को जेल में बंद रखने के कारण दरोगा से कहासुनी के बाद उसकी पिटाई कर दी थी। यही नहीं चुनौती भी दी कि बना दो जलियांवाला बाग, मुङो परवाह नहीं। संपत बताती हैं उस वक्त यह मालूम भी न था कि दरोगा को पीटने से मेरे खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। मुझ पर केस हो गया। अदालत में पेशी हुई। जज को मैंने कहा कि ऐसे लोग दरोगा क्यों बनाए जाते हैं जो महिला का सम्मान करना नहीं जानते।
इस बात से जज
प्रभावित हुए और मुङो फिर कभी पेशी के लिए अदालत आने से मना कर दिया
लेकिन मामला अभी चल रहा है। संपत बताती हैं कि बांदा जिले के अटरा गांव की एक लड़की अरुणा की जून 2013 में शादी हुई थी। उसकी गर्दन पर सेहूंआ था लेकिन नन्द ने उसे कोढ़ बताया। अरुणा के मना करने के बावजूद ससुर ने उसका पल्लू हटाकर गर्दन देखने की कोशिश की। अरुणा ने जब विरोध किया तो पति ने पिता की बेइज्जती के बदले में उस पर हाथ उठाया। अरुणा ने संपत से मदद मांगी। संपत ने उसके हाथ में डंडा थमाकर ससुराल में ही रहने को कहा।
तभी संपत ने
ठान लिया कि अब लड़कियां ससुराल में रहकर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ेंगी।
इस विषय पर संपत ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा है।
कुछ दिन बाद
पति ने बहला फुसला कर अरुणा को बुलाया और बहुत पीटा। घर से निकालकर
ताला बंद कर दिया लेकिन अरुणा ने हिम्मत नहीं हारी, डंडा उठाया और पति, ससुर और नन्द की जमकर पिटाई की। मार खाकर पूरा परिवार लापता हो गया। अरुणा ताला तोड़कर अभी भी ससुराल में ही रह रही है।
अब पति और
ससुर फोन करके मामला खत्म करने की बात कह रहे हैं।
पांच बच्चों
की मां हैं संपत
वर्ष 1958 में बांदा में जन्मीं संपत पाल बाल विवाह
का विरोध करती हैं क्योंकि महज 12 साल की
उम्र में उनका विवाह कर दिया गया था। संपत पढ़ना चाहती थीं। परिवार में उनके भाइयों को स्कूल भेजा जाता था, मगर लड़की होने के कारण उन्हें नहीं। संपत के पिता चरवाहा थे। यूं तो संपत बचपन से पिता के साथ काम करने में रुचि रखती थीं, लेकिन बचे हुए समय में वह भाइयों की मदद से पढ़ाई भी करती थीं। पढ़ाई में उनकी अधिक रुचि को देखते हुए उन्हें स्कूल में दाखिल तो करा दिया गया, लेकिन चौथी कक्षा तक पढ़ने के बाद स्कूल से निकाल दिया गया और बांदा जिले के अटारा गांव में एक आइसक्रीम विक्रेता से उनका विवाह हो गया। 12 वर्ष की उम्र में शादी करने के बाद महज 20 वर्ष की उम्र तक संपत पांच बच्चों की मां बन चुकी थीं। बचपन से उनके दिल में सामाजिक कार्यो का जो जुनून भरा हुआ था वह कभी कम नहीं हुआ। कुछ वक्त तक सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी की तरह कार्यरत रहीं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता बनने के सपने को साकार करने के लिए इस्तीफा दे दिया और गुलाबी गैंग की लाठी हाथ में उठा ली। संपत के कार्यो से प्रभावित होकर नाव्रे और लंदन में दो वृतचित्र और फ्रांस के लेखक ऐनी बर्थोड ने ‘संपत पाल, वैरियर इन पिंक साड़ी’ किताब लिखी है, जिसका इटैलियन, स्पैनिश, गुजराती, मराठी, पुर्तगाली और अंग्रेजी भाषाओं में भी अनुवाद किया जा चुका है। संपत को वुमेन ग्रेट अवार्ड, भारत ज्योति अवार्ड, सब चैनल की तरफ से सतरंगी परिवार अवार्ड और हाल ही में कर्नाटक में लिंगन संस्था द्वारा सम्मानित किया गया है।
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Source – KalpatruExpress News Papper
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शुक्रवार, 7 मार्च 2014
गुलाबी गैंग के बारे में विस्तार -
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