सोमवार, 3 मार्च 2014

सड़क संस्कृति की जरूरत



सड़कों पर तेज गति से भागती हुई लंबी कारें किसी की परवाह किए बिना दौड़ रही हैं। किसी चौराहे पर लाल बत्ती को धता बताकर रोड पार कर जाना या ट्रैफिक पुलिस का मुस्तैदी से काम करने की बजाय खुलेआम घूस लेना समाज की सोच को ही दिखाता है। गलत तरीके से ओवरटेकिंग, बेवजह हार्न बजाना, निर्धारित लेन में न चलना और तेज गति से गाड़ी चलाकर ट्रैफिक कानूनों की अवहेलना, आज के नवधनाढ्य युवकों का शगल बन गया है।
नवदौलतियों की बेलगाम गाड़ियां कभी फुटपाथ पर सो रहे प्रवासी मजदूरों को कुचल देती हैं तो कभी किसी झुग्गी में घुसकर दो चार जानें लेने के बाद ही आगे बढ़ती हैं। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि कानून के लंबे हाथ भी प्राय: इनके गिरेबां तक नहीं पहुंच पाते हंै। सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ जिस सड़क संस्कृति की जरूरत होती है वह हमारे देश में अभी तक नहीं बन पाई है।
सड़कों की अराजकता आज हमारे समाज की अराजकता को ही दिखाती है। कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग भारत में मरते हैं। हमारे बाद चीन का नंबर है। सरकारी और गैर सरकारी सर्वे बता रहे हैं कि प्रति वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसा नहीं है कि ट्रैफिक को नियंत्रित- व्यवस्थित करने के लिए कानून की कमी है। असल समस्या है कानून के प्रति सम्मान का अभाव और हर स्तर पर संवेदनशीलता की कमी।
एक बार देश के पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लै ने कहा था कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 1,48,000 लोग मारे जाते हैं, जबकि चरमपंथी हमलों में हर साल लगभग दो हजार लोग मारे जाते हैं। साफ है कि ये सौ गुना ज्यादा बड़ी समस्या है लिहाजा केंद्रीय गृह मंत्रालय को सड़क दुर्घटनाओं के बारे में चिंता करनी चाहिए। सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लगभग 30 लाख लोग जख्मी होते हैं।
उनमें से कई की नौकरी चली जाती है।
फिर बीमा की रकम देनी पड़ती है।
पिल्लै के अनुसार देश की आर्थिक स्थिति पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। एक आंकलन के मुताबिक, कुल मिलाकर इन दुर्घटनाओं से देश को सालाना 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है। पर इन सब चीजों को नजरअंदाज कर सड़कों पर रोज-रोज कारें उतारी जा रही हैं। अकेले दिल्ली में हर साल 48 हजार नई कारें सड़कों पर आती हैं, ऐसे में चाहे जितनी भी सड़कें या फ्लाईओवर बन जाएं यातायात की समस्या कम नहीं होगी।
केंद्र सरकार का कहना है कि सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए वह मोटर वाहन अधिनियम को सख्त बनाने में जुटी हुई है। उम्मीद है कि मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन के लिए 24 अप्रैल से शुरू होने वाले बजट सत्र की दूसरी पारी में विधेयक भी लाया जाए।
सड़क दुर्घटनाएं रोकने के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाने होंगे। जैसे शहरों में पैदल चलने वाले लोगों के लिए फुटपाथ बनाना और बनाए गए फुटपाथों को अतिक्रमण से बचाना।
इसी तरह सड़क सुरक्षा के लिहाज से बनाए गए जरूरी नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई किया जाना भी महत्त्वपूर्ण है। आज कई संगठन दुर्घटना रोकने के लिए तकनीकी शोध कर रहे हैं। जैसे तमिलनाडु के कोयम्बटूर स्थित अन्ना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधार्थियों ने ऐसी तकनीक ईजाद की है जो गाड़ी चलाते वक्त फोन आने पर मोबाइल को जाम कर देगी। ऐसी तकनीकें भी अहम हैं, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण है लोगों की सोच को बदलना। इस बात की आज महती जरूरत है। इसके लिए समाज के संवेदनशील मनुष्यों और संस्थाओं को आगे आना होगा। शिक्षण संस्थाओं का इसमें एक बडा योगदान हो सकता है।
By -शैलेन्द्र चौहान

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Source – KalpatruExpress News Papper






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