रंभ में
संपूर्ण जम्बूद्वीप का छोटा हिस्सा भारतवर्ष था और भारतवर्ष का एक छोटा-सा
हिस्सा आर्यावर्त था।
भारत के मध्य
में नर्मदा और गोदावरी तो दक्षिण में कृष्णा व कावेरी हैं। इसके एक ओर सिन्धु और
उसकी सहायक नदियां बहती हैं तो दूसरी ओर ब्रrापुत्र व उसकी सहायक नदियां। दोनों के बीच गंगा का जल भारत के हृदय में है।
इन नदियों से जुड़ा संपूर्ण क्षेत्र भारतवर्ष कहलाता है।
सिन्धु नदी
सिन्धु के बिना हिन्दू वैसे ही हैं, जैसे प्राण के बिना शरीर, अर्थ के बिना शब्द हैं। गंगा से पहले हिन्दू संस्कृति में सिन्धु की ही
महिमा थी। सिन्धु से ही हिन्दुओं का इतिहास है। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है।
इस नदी का उल्लेख वेदों में अनेक स्थानों पर है। इस नदी के किनारे ही वैदिक धर्म
और संस्कृति का उद्गम और विस्तार हुआ है।
सिन्धु का
उद्गम और मार्ग नए शोध परिणामों के मुताबिक सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के गेजी
काउंटी में कैलाश के उत्तर-पूर्व से होता है। नए शोध के मुताबिक, सिन्धु नदी 3,600 किलोमीटर लंबी है, जबकि पहले इसकी लंबाई 2,900 से 3,200 किलोमीटर मानी जाती थी। इसका क्षेत्रफल 10 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है। सिन्धु
नदी भारत से होकर गुजरती है लेकिन इसका मुख्य इस्तेमाल भारत-पाक जल संधि के तहत
पाकिस्तान करता है।
सिन्धु के
तीर्थ मुल्तान में सिन्धु-चिनाब के किनारे श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की याद में
सूर्य मंदिर बना है। इस मंदिर का स्वरूप कोणार्क के सूर्य मंदिर से मिलता-जुलता
है, लेकिन अब सब
कुछ नष्ट कर दिया गया है। सिन्धु के मुहाने पर (हिंगोल नदी के तट पर) पाकिस्तान
के बलूचिस्तान के हिंगलाज नामक स्थान पर माता हिंगलाज का मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है।
वितस्ता नदी
सिन्धु की सहायक वितस्ता (ङोलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी
श्रीनगर स्थित है। ङोलम नदी हिमालय के शेषनाग झरने से प्रस्फुटित होकर कश्मीर
में बहती हुई पाकिस्तान पहुंचती है और झंग मघियाना नगर के पास चिनाब में समाहित
हो जाती है। यह नदी 2,130 किलोमीटर तक
प्रवाहित होती है। नैसर्गिक सौंदर्य की अनुपम कश्मीर घाटी का निर्माण ङोलम नदी
द्वारा ही हुआ है।
वितस्ता के
तीर्थ वितस्ता के उद्गम वेरीनाग के पास कई प्राचीन स्थान हैं। यहां खनबल के पास
अनंतनाग नामक सुंदर तालाब है। बताया जाता है कि इस क्षेत्र में अनंतपुर नामक एक
प्राचीन शहर दबा है। खनबल के आगे बीजब्यारा का प्राचीन मंदिर है। आगे यह नदी
श्रीनगर पहुंचती है।
सरस्वती नदी
ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। महाभारत में
सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती आदि कई
नाम हैं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहती
हुई बताया गया है। ताण्डय और जैमिनीय ब्राrाण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है। महाभारत में
सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन है। वैदिक
धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है।
सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रrा सरोवर से प्रकट हुई।
सरस्वती का
उद्गम, मार्ग महाभारत
में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और
शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा-सा नीचे आदिबद्री नामक स्थान से निकलती थी। आज भी
लोग इस स्थान को तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं और वहां जाते हैं। प्राचीनकाल
में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिन्ध प्रदेश तक जाकर सिन्धु
सागर (अरब की खाड़ी) में गिरती थी।
सरस्वती के
तीर्थ जहां सरस्वती की सात धाराएं प्रकट हुईं, उसे सौगंधिक वन कहा गया है। उस सौगंधिक वन में प्लक्षस्रवण नामक तीर्थ है, जो सरस्वती तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
रेगिस्तान में उतथ्य मुनि के शाप से भूगर्भित होकर सरस्वती लुप्त हो गई और
पर्वतों पर ही बहने लगी। सरस्वती पश्चिम से पूरब की ओर बहती हुई सुदूर पूर्व
नैमिषारण्य पहुंची। सात धाराओं के साथ सरस्वती कुंज पहुंचने के कारण नैमिषारण्य
का वह क्षेत्र सप्त सारस्वत कहलाया। यहां मुनियों के आवाहन पर सरस्वती अरुणा नाम
से प्रकट हुई। अरुणा सरस्वती की आठवीं धारा बनकर धरती पर उतरी व कौशिकी यानी
कोसी से मिल गई।
गंगा नदी ब्रrा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे
पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था।
उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने आगे बढ़ाया। पहले हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को
देवलोक कहा जाता था।
गंगा का उद्गम
गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है।
गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है।
गंगोत्री
उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है।
सर्वप्रथम
गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया। किंतु वस्तुत: उनका
उद्गम 18 मील और ऊपर
श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की
धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा
गोमुख गंगा का उद्गम स्थल है।
गंगा की धारा
हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में
विभक्त होती है इसमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और
अलकनंदा प्रमुख हैं।
गंगा नदी की
प्रधान शाखा भागीरथी है, जो कुमाऊं में
हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है।
यहां गंगाजी
को समर्पित एक मंदिर भी है।
गंगा तट के
तीर्थ गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ हैं। गंगा को
भारत का हृदय माना जाता है। प्रयाग, हरिद्वार जैसे अनगिनत तीर्थ इसी पवित्र नदी के किनारे हैं।
रेवा नदी
नर्मदा नदी को रेवा नदी भी कहा जाता है। यह नदी मध्यप्रदेश के विंध्याचल की
मैकाल पहाड़ी श्रृंखला के अमरकंटक क्षेत्र से निकलकर गुजरात होते हुए अरब की
खाड़ी में गिरती है। इसके बीचोबीच स्थित है नेमावर, जिसे प्राचीन काल में नैमिषारण्य क्षेत्र कहा
जाता था जहां ऋषि-मुनि तपस्या करते थे। स्कंदपुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड
के अंतर्गत किया गया है। नर्मदा, गोदावरी और महानदी के किनारे ही भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
महानदी
छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम
चित्राेत्पला था।
महानंदा एवं
नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले
में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद
सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरूप महानदी बन जाती
है।
गोदावरी नदी
गौतम से संबंध जुड़ जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा। गोदावरी दक्षिण
भारत की एक प्रमुख नदी है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमघाट की पर्वत श्रेणी के अंतर्गत
त्रयम्बक पर्वत से हुई है, जो महाराष्ट्र में स्थित है। यहीं त्रयम्बकेश्वर तीर्थ है जो नासिक जिले में
है। नदी की लंबाई करीब-करीब 900 मील है। गोदावरी नदी धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र मानी जाती है। प्रति 12वें वर्ष पुष्करम का स्नान करने के लिए
राजमुंद्री के पास बहुत बड़ा मेला लगता है जिसे कुंभ का मेला कहा जाता है।
गोदावरी के तट पर भगवान राम ने अपना वनवास काटा था।
इन्हें
महापुण्यप्राप्ति कारक बताया गया है- सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन:।
महापुण्यमप्राप्नोति
देवलोके च गच्छति॥ कृष्णा नदी कृष्णा नदी दक्षिण भारत की एक महत्त्वपूर्ण नदी है, इसका उद्गम पश्चिमी घाट के पर्वत
महाबलेश्वर (महाराष्ट्र) से होता है। यह महाराष्ट्र में 303 किमी, आंध्रप्रदेश में 1,300 किमी तथा
कर्नाटक में 480 किमी की
यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
कृष्णा नदी तट
के तीर्थ कृष्णा नदी में भीमा और तुंगभद्रा दो बड़ी सहायक नदियों सहित 6 उपनदियां गिरती हैं। कृष्णा नदी की
उपनदियों में प्रमुख हैं- तुंगभद्रा, घाटप्रभा, मूसी और भीमा।
कृष्णा बंगाल की खाड़ी में मसुलीपट्म के निकट गिरती है। महाभारत सभा पर्व में
कृष्णा को कृष्णवेणा कहा गया है और गोदावरी और कावेरी के बीच में इसका उल्लेख
है। कृष्णा और वेणी के संगम पर माहुली नामक प्राचीन तीर्थ है। पुराणों में
कृष्णा को विष्णु के अंश से संभूत माना गया है।
कावेरी दक्षिण
की गंगा कहलाने वाली कावेरी का वर्णन कई पुराणों में आता है। कावेरी को बहुत
पवित्र नदी माना गया है। कावेरी नदी में मिलने के वाली मुख्य नदियों में हरंगी, हेमवती, नोयिल, अमरावती, सिमसा, लक्ष्मणतीर्थ, भवानी, काबिनी मुख्य हैं। यह सह्याद्रि पर्वत के
दक्षिणी छोर से निकलकर कर्नाटक और तमिलनाडु से बहती हुई 800 किमी मार्ग तय कर कावेरीपट्टनम के पास
बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
कावेरी तीर्थ
कावेरी तीन स्थानों पर दो शाखाओं में बंटकर फिर एक हो जाती है, जिससे तीन द्वीप बने हैं। इन द्वीपों पर
आदिरंगम, शिवसमुद्रम व
श्रीरंगम नामक विष्णु भगवान के भव्य मंदिर हैं। शैव तीर्थ चिदम्बरम तथा
जंबुकेश्वरम भी श्रीरंगम के पास स्थित हैं। प्राचीन गौरवमय तीर्थ नगर तंजौर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली इसी पवित्र नदी
के तट पर स्थित हैं।
ब्रrापुत्र ब्रrापुत्र के कारण ही बर्मा (म्यांमार) का नाम पहले ब्रrावर्त था। ब्रrा को ब्रrा (ईश्वर) का पुत्र कहा जाता है इसीलिए इसे भी ब्रrापुत्र कहा गया। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज
(सीएएस) के शोध अनुसार ब्रrापुत्र (तिब्बती भाषा में यारलुंगजांगबो) का उद्गम स्थल तिब्बत के बुरांग
काउंटी स्थित हिमालय पर्वत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित आंग्सी ग्लेशियर है, न कि चीमा-युंगडुंग ग्लेशियर, जिसे भूगोलविद् स्वामी प्रणवानंद ने 1930 के दशक में ब्रrापुत्र का उद्गम बताया था। नए शोध परिणामों
के मुताबिक ब्रrापुत्र नदी 3,848 किलोमीटर लंबी है और इसका क्षेत्रफल 7,12,035 वर्ग किलोमीटर है, जबकि पहले के दस्तावेजों में नदी की लंबाई 2,900 से 3,350 किलोमीटर और क्षेत्रफल 520,000 से 17 लाख 30 हजार वर्ग
किलोमीटर बताया गया था।
प्रा
सर्वश्रेष्ठ नदियां भारत में प्राचीनकाल से ही नदियों को पूज्य माना गया है।
हमारे वेदों और पुराणों में भी नदियों की महत्ता को समझया गया है। ऋग्वेद में
आर्यों के निवास स्थान को सप्तसिन्धु प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्य निवास में प्रवाहित होने वाली
नदियों का वर्णन मिलता है,जिनमें मुख्य हैं:- कुंभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिन्धु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री
(सतलुज), वितस्ता
(ङोलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा।
सिन्धु से ही
हिन्दुओं का इतिहास है। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है।
सिन्धु नदी का
भारत और हिन्दू इतिहास में सबसे ज्यादा महत्त्व है।
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Source –
KalpatruExpress News Papper
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शनिवार, 8 मार्च 2014
हिन्दू धर्म में पूज्य सर्वश्रेष्ठ नदियां
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