गुरुवार, 6 मार्च 2014

मां के आहार से तय होता है बच्चे का मोटापा!


न्यूयार्क। गर्भावस्था के दौरान ज्यादा चिकनाई वाला भोजन शिशु के विकसित होते मस्तिष्क में बदलाव ला सकता है और यह बाद में मोटापे की संभावनाओं को बढ़ाता है। यह जानकारी जानवरों पर हुए ताजा अध्ययन में सामने आई है।
अमेरिका के येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने बताया कि आहार चूहों के मस्तिष्क की संरचना को बदल सकता है। इन शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे मोटे माता-पिता के बच्चों के मोटे होने की संभावना ज्यादा हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह शोध महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मनुष्यों में होने वाले मस्तिष्क संबंधी परिवर्तनों की अभी पुष्टि नहीं हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि मोटापे का असर पूरे परिवार पर हो सकता है और खान-पान की साझ आदतें इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण हैं।
हालांकि इस बात के सबूत मौजूद हैं कि गर्भावस्था के दौरान खान-पान से भविष्य में बच्चों के वजन पर असर हो सकता है, ऐसा डीएनए में होने वाले परिवर्तन से संभव है। इस क्षेत्र में ताजा और शुरुआती अध्ययन जर्नल सेल में प्रकाशित हुआ, जो दिखाता है कि मस्तिष्क की संरचना भी बदल सकती है। चूहों पर किए गए शोध से पता चला कि ज्यादा वसा वाले भोजन का सेवन करने वाली चुहिया के बच्चों के हाइपोथैलेमस में परिवर्तन देखा गया।
हाइपोथैलेमस मस्तिष्क का वह महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जो मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करता है। सामान्य आहार लेने वाली चुहिया के बच्चों की तुलना में ज्यादा चिकनाई लेने वाली चुहिया के बच्चों के मोटे होने और टाइप-2 मधुमेह से ग्रस्त होने की संभावना ज्यादा थी।
येल के एक शोधकर्ता प्रोफेसर टॉमस होव्र्थ ने बताया, यह बच्चे के लिए एक संकेत हो सकता है कि वह ज्यादा वृद्धि कर सकता है क्योंकि पर्यावरण में आहार पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा, हम निश्चित तौर पर मानते हैं कि यह आधारभूत जैविक प्रक्रियाएं हैं, जिनका असर इंसानों पर भी होता है। इनसे पता चल सकता है कि बच्चे आखिर मोटे कैसे होते हैं।
प्रोफेसर टॉमस होव्र्थ के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान संतुलित आहार लेना मोटे माता-पिता के मोटे बच्चे होने के चक्र को तोड़ सकता है।
अध्ययन के निष्कर्षो के बारे में साउथैंपटन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर ग्राहम बर्ज ने कहा, पिछले बीस साल के शोध दिखाते हैं कि जीवन के शुरुआती दिनों के पोषण का दिल की बीमारियों, मोटापे, ऑस्टिओपोरोसिस और कुछ कैंसर पर काफी गहरा असर पड़ता है।
उन्होंने कहा, यह एक दिलचस्प तकनीकी विकास है, जो दिखाता है कि न्यूरोलॉजिकल सर्किट में बदलाव हो रहा है, इससे पहले कभी ऐसा नहीं दिखा था।
उनका कहना है कि यह सिद्धांत आंकड़ों के साथ सटीक बैठता है लेकिन चूहों और इंसानों में चिकनाई को पचाने के तरीके में अंतर है, इसलिए मुमकिन है कि यही बात गर्भवती महिला पर न लागू हो। वह माता-पिता को सलाह देते हैं, स्वस्थ और संतुलित आहार लीजिए और ध्यान रखिए कि आपके बच्चे का आहार भी संतुलित हो।

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Source – KalpatruExpress News Papper

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